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रामराज्य : अर्थात समाजवाद

JANMANCH
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महात्मा गांधी का सपना था राम राज्य, कुछ राजनैतिक पार्टियां भी भारत में राम राज्य की पक्षधर हैं, परन्तु राम राज्य अभी भी सपनों में ही है और शायद अब तो रामराज्य की कल्पना करने वाला भी साम्प्रदायिक समझा जाएगा, लेकिन वास्तव राम राज्य है क्या जो हमारे यहाँ राम राज्य की कल्पना करना भी गलत हो गया है समाज का दुश्मन हो गया है


राम राज्य में लोग संपन्न थे प्रसन्न थे, वातावरण भ्रष्टाचार रहित था, सभी सुरक्षित थे, लोग विभिन्न प्रकार के रचनात्मक और उर्वरक कार्यों में व्यस्त थे, लोग अपनी कोई भी व्यथा राजा को कभी भी बता सकते थे और राम उनके आंसू एक पुत्र के सामान पोंछते थे, जनता की इच्छा महत्वपूर्ण थी और उसका सम्मान किया जाता था, वास्तव में “रामराज्य” पूरी तरह से राजसत्ता नहीं थी वरन लोकसत्ता भी थी। जहां पूँजीवाद का नहीं समाजवाद को बोलबाला था।


शायद इसी सामाजिक और मानवीय मूल्यों को समझते हुए गांधीजी ने रामराज्य का स्वप्न देखा था जहां न्याय का शासन हो समानता हो, आदर्श हों, लेकिन शायद उन्हें नहीं पता था की उनका ये सपना उनकी ही पार्टी की आँखों में चुभने लगेगा।


बहरहाल मैं रामराज्य के विषय मे लिख रहा था मुझे ऐसा लगता है की शायद राम ही पहले समाजवादी थे जिन्होंने समाजवाद की स्थापना की, शायद मुलायम सिंह इस बात से सहमत न हों लेकिन राम और रामराज्य के विषय में लिखी और पढ़ी गयीं बातें इतना मानने के लिए बहुत हैं।


राम राज्य बैठे त्रिलोका, हर्षित भये गए सब शोका।

तीनों लोकों में सब प्रसन्न थे और सबके दुःख दूर हो गए राम के राजा बनने पर, निश्चित ही जब राम विश्वामित्र जी के साथ सर्वप्रथम वन में ताड़का का वध करते हैं और बाद में जन सामान्य को प्रेरित कर सुबाहु का वध करते हैं मारीच को भगा देते हैं तभी लोगों में राम के प्रति विशवास उत्पन्न होता है वो ताड़का वन में शान्ति स्थापित करते हैं जो लोग राक्षशों के बंदी थे असहाय महिलायें थीं उन्हें वापस मुख्य धारा से जोड़ते हैं। समाज से बहिष्कृत अहिल्या जो जडवत हो चुकी थी को समाज में वापस लाते हैं उसी मान मर्यादा के साथ जिसकी वो अधिकारिणी थी, वो विभिन्न आदिवासी समुदायों को जागृत करते हैं और जब ऐसे राम अयोध्या के राजा बनते हैं तो निश्चित सर्व समाज हर्ष से सराबोर हो जाता है।


दैहिक दैविक भौतिक तापा राम राज्य नहीं कहहीं व्यापा।

राम राज्य में किसी को भी मानसिक या शारीरिक परेशानी नहीं थीं। निश्चित ही राम राज्य में चिकित्सा व्यवस्था बहुत अच्छी रही होगी सभी के दुखों को निवारण करने का प्रयास किया जाता रहा होगा।


बैर न कर कहु संग कोई राम प्रताप विषमता खोई।

राम के प्रयासों से समाज में विषमता लगभग समाप्त हो गयी थी लोगों में आपस में भी कोई बैर भाव नहीं था।


नहीं दरिद्र कोई दुखी न दीना नहीं कोई अबुध न लक्षण हीना

न गरीबी, न दुःख, न किसी की उपेक्षा केवल मानवता का मानव मूल्यों का सृजन ऐसा था राम राज्य।


ये सब राम राज्य के कुछ अंश मात्र हैं। लेकिन उनके द्वारा किये गए वृहत्तर कार्य को झुठलाया नहीं जा सकता जब वो वन वन घूम कर समाज को जाग्रत करते हैं राक्षशों के आतंक से मुक्ति दिलाते हैं लोगों में साहस का संचार करते हैं आत्म विशवास दिलाते हैं।


वो उपेक्षित, अछूत, तिरस्कृत समाज को सर्व समाज में वापस लाते हैं और सम्मान दिलाते हैं। और उन्ही की सहायता से रावण को समाप्त करते हैं। और वही राम जो चौदह वर्ष के वनवास के दौरान जन जन के मन पर विराजमान हो जाते हैं जब सत्तारूढ़ होते हैं तो सर्व समाज उनके द्वारा बनायी गयी व्यवस्थाओं को सहजता से अपनाते हैं और उनका समर्थन भी करते हैं। राम अपने कार्यों से ये सिद्ध करते हैं की एक राजा का अपना समस्त जीवन, सुख, दुःख, सब प्रजा के सुख दुःख से जुड़े होते है।


और राम जो निराश्रयों को आश्रय देते हैं, अछूतों,वनवासियों, पिछड़ों को समाजकी मुख्यधारा से जोड़ते हैं वो राम जिनके छूने मात्र से पत्थर भी पानी में तैरने लगते हैं और प्रतिमाएं भी सजीव हो जातीं हैं, ऐसे राम जिनका नाम सुनकर ही राक्षस (बुरे लोग) डरकर भाग जाते हैं। वास्तव ऐसे राम ही समाजवाद के प्रथम प्रणेता हैं।


इसलिए आज यदि हम राम राज्य की बात करते हैं तो बात करते हैं समाजवाद की, अयोध्या की बात करते हैं तो बात करते हैं उस स्थान की जहां न्याय है, धर्म है, अहिंसा है और शान्ति है


शायद इसीलिए महात्मा गांधी ने राम राज्य का सपना देखा था

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