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मेरे विवाह को नौ वर्ष हो चुके हैं दो बेटे भी हैं लव और कुश, हंसी ख़ुशी जीवन चल रहा था की एक दिन अचानक मुझे अहसास हुआ की हम दोनों मियाँ- बीवी उतना प्यार नहीं करते जितना की और शादी शुदा लोग करते हैं, हुआ यूँ की एक दिन पड़ोस के वर्मा जी मिल गए उनके दोनों गालों पर खूबसूरत सी लाली छाई हुई थी मैंने पूछा की भाई ये क्या हुआ ……. वो गालों पर हाथ फेरते हुए बोले “ओह …… ये तो तुम्हारी भाभी ने प्यार का इज़हार किया है”. मैं चोंका इस तरह, सरे आम …… लगता तो ऐसा है की उन्होंने दोनों गालों पर हाथ साफ़ किया है …….! वो बोले हुआ यूँ की मेरी किसी बात पर तुम्हारी भाभीजी से तकरार हो गयी …… और गुस्से में गलती से मेरा हाथ उनके गाल पर चल गया……..! मुझे ग्लानी हुई तो मैंने उसे प्यार से समझाते हुए कहा की ” बुरा मत मानो …. आदमी जिसको प्यार करता है उसी से तो झगड़ा करता है ” बस अब तुम तो अपनी भाभी जी को जानते ही हो, हाज़िरजवाबी तो उनकी खूबी है ……… वो बोली ” आप क्या समझते हैं की प्यार केवल आप ही करते हैं मैं कोई आपसे कम प्यार थोड़े ही करतीं हूँ ……… और तुरंत मेरे दोनों गालों पर प्यार का इज़हार कर दिया ……..! बस ये वही निशान हैं……. !
ये मैं अक्सर सुनता हूँ की ” कि जिन पति पत्नियों में प्यार होता है झगडा भी उन्ही में होता है जिनमें प्यार नहीं उनमें झगडा नहीं ……………..!” वो बात अलग है कि कुछ लोग प्यार इतना ज्यादा करते हैं कि अदालत तक पहुँच जाते हैं ………….. पर ये तो सभी जानते हैं कि अति हर चीज़ कि बुरी होती है इसलिए प्यार भी थोडा ही करना चाहिए बस वहां तक…… जहां अदालत कि चौखट न दिखे . बहरहाल वर्माजी तो चले गए पर मैं उदास हो गया …….. ! बताइये नौ साल के शादी शुदा कैरिएर में मैंने एक बार भी वर्माजी के टाइप का प्यार नहीं किया ………..! दो – दो बच्चे हो गए …………. और हम दोनों आपस में प्यार ही नहीं करते ……..! मैं केवल सोच कर ही रह गया, और ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा. परन्तु वर्मा जी की सारी बातें हमारी श्रीमतीजी भी सुन रहीं थीं, और ये बात उनके दिल में घर कर गयी, ये सब सुनकर सोच कर वो मन में घुटने लगीं की “बताइये नौ वर्ष बाद भी हम प्यार नहीं करते” और शायद यही सोचकर उन्होंने प्रण लिया की वो स्वयं तो प्यार करने के बहाने ढूंढेंगी ही मुझे भी मजबूर कर देंगी प्यार करने के लीये.
अगले ही दिन सुबह को दैनिक क्रियाओं के पश्चात समाचार पत्र पढने लगा परन्तु रोज़ की तरह चाय नहीं आई, मैंने श्रीमतीजी को आवाज़ लगाई तो पता चला वो सो रहीं थीं, परन्तु वो सो नहीं रहीं थीं वो तो प्यार करने के लिए तैयार थीं की मैं उनसे कुछ कहूं और वो शुरू हो जाएँ और कम से कम आठ साल बाद ही सही वो भी कह सकें की झगड़ते वही लोग हैं जो प्यार करते हैं……..! जब मुझे कोई उत्तर नहीं मिला तो मैंने स्वयं ही चाय बना ली, और श्रीमती जी के पास गया “लीजिये मैडम आज हमारे हाथों की चाय का लुत्फ़ उठाइये ” उन्होंने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं चाय नहीं ज़हर का प्याला लाया हूँ, शायद सुबह सुबह प्यार का मौका हाथ से निकल गया …….. लेकिन वो यूँ ही हार मानने वालीं नहीं थीं तो चाय की चुस्की लेते ही कुछ तुनक कर बोलीं ……….” ये क्या बकवास चाय बनायी है इसे भी कोई चाय कहेगा क्या ………?
हमने मुस्कराते हुए कहा ” जी बिलकुल नहीं कहेगा ये नाचीज़ तो उसी को चाय कहेगा जिसे आप कह देंगी ………….!
श्रीमती जी पहले पहल तो चुप रह गयीं, क्योंकि ये वर्माजी टाइप प्यार का अनुभव तो उन्हें भी न था, सो उन्हें प्यार करने का अवसर हाथ से जाता दिख रहा था, लेकिन सभी जानते हैं इस देश की नारियां तो यमराज से भी पंगा ले लें तो पति कौन खेत की मूली है, तो तुरंत ही पलटवार किया ” तो क्या आपको में कुछ भी चाय कह कर पिला देतीं हूँ और तुम इतने सीधे हो की चुप चाप पि जाते हो ………. ! ” बात कुछ जोश में कही गयी थी
मैंने कहा : अजी कहाँ आपके हाथ की चाय होती ही इतनी लाज़वाब है की मेरी ज़ुबान से उसका स्वाद उतरता ही नहीं है ……….. .!
“तो क्या मैं केवल चाय ही अच्छी बनाती हूँ ………….! बाकी का खाना क्या बेकार बनातीं हूँ ………. हे भगवान् ! नौ साल हो गए इनको खाना खिलाते खिलाते लेकिन आज तक इन्हें मेरे हाथ का खाना ही अच्छा नहीं लगा ……..!
अब मुझे लगने लगा की श्रीमती जी का प्यार करने का पूरा मूड है। तो मुझे लगा की बात संभालनी चाहिए कहीं ज्यादा प्यार व्यार हो गया तो दिक्कत हो जायेगी ……… वर्मा भी पूछेगा की तुम्हारी पत्नी भी तुमको प्यार करने लगीं ………!” मैं बोला ” ये बात तो सच है की मुझे तुम्हारे हाथ की चाय ही अच्छी लगती है…….
वो हतप्रभ और गुस्से से मेरी ओर देखने लगीं, ……… मैं आगे बोला ” खाना तो तुमसे अच्छा हमारी “सासु जी” बनातीं हैं तुम भी अच्छा बनाती हो लेकिन तुम्हारी मम्मी वाली बात तुम्हारे हाथों में नहीं है।
अब श्रीमती जी चुप इस बात पर खुश हों की लडें वो कुछ असमंजस की स्थिति में आ गयीं, वो ये तय नहीं कर पायीं की मम्मी की तारीफ़ सुनकर खुश हों या नाराज, और चुपचाप चाय पीने लगीं साथ ही नए पैंतरे सोचने लगीं।
मैं भी ऑफिस के लिए तैयार होने लगा, इस बीच मैंने देखा की श्रीमती नाश्ते की तैयारी तो कर ही नहीं रहीं हैं इसका मतलब अभी वर्मा वाले प्यार की गुंजाइश अभी बाकी है… ……… मैंने बाथरूम से ही आवाज़ लगाकर कहा “अजी सुनो नाश्ता मत बनाना, आज मैं एक क्लाइंट के साथ जा रहा हूँ नाश्ता उसी के साथ है।”
श्रीमतीजी को ये बात नागवार गुजरी और जब हम तैयार होकर आये तो “नाश्ता” मेज़ पर तैयार था और साथ ही एक खतरनाक घुड़की भी ” चुपचाप नाश्ता करके जाओ, अपने घर खाकर जाना चाहिए।” बहुत बढ़िया हम तो चाहते ही यही थे.
लेकिन श्रीमती जी के व्यवहार ने इतना जरूर जतला दिया था की वो हमसे कितना प्यार करतीं हैं और प्यार की किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को हाथ से जाने नहीं देना चाहतीं इसीलिए वो उस अभिव्यक्ति को भी प्रकट करने के बहाने ढूढ़ रहीं थीं जिसके कारण वर्मा के गालों पर लाली आई थी और वो ये भी नहीं सहन कर सकतीं थीं की कल को कोई ये न कहे की ” अरे आप दोनों में झगडा नहीं होता इसका मतलब आप प्यार नहीं करते क्योंकि प्यार तो उन्ही में होता है जिनमें झगडा होता है।
शाम को मैं ऑफिस से आकर काम कर रहा था की वर्माजी आ गए। मैं देखकर चौंका ” अरे ये क्या ये माथे पट्टी कैसी कहीं एक्सीडेंट हो गया क्या ?”
वो बले अजी कुछ नहीं ” बस यूँ ही ज़रा सी चोट है” बस जरा सा पहले ही हेलमेट उतार लिया था और ये चोट लग गयी ……… !
अरे लेकिन हुआ क्या, कहाँ हुआ किस से हुआ ……… कोई पुलिस केस तो नहीं हुआ
अरे क्या गुप्ता जी, आपस में प्यार करने वाले कहीं पुलिस केस करते हैं ……….. वो तो में जब ऑफिस से आकर स्कूटर खडा कर रहा था तो श्रीमती जी किसी बात पर गरम थीं बस फेंक दिया बेलन ………… लगा गया थोडा सा बस तीन चार टाँके ही तो हैं।
मैंने कहा …….. ये तो सरासर गलत है भाभीजी को ऐसा नहीं करना चाहिए था …….. और अब तो वो भी बहुत दुखी होंगी आपकी चोट के कारण पश्चाताप हो रहा होगा ……
न न ……. वो तो खुश है की निशाना सैट बैठ गया।
आपके चोट लगने पर वो खुशि…. मैंने आश्चर्य से पूछा
हाँ उसमें क्या है प्यार करने वाले तो ऐसे ही हंसी ख़ुशी रहते हैं, कल मैं खुश था उनका निशाना खाली चला गया था आज वो खुश हैं की निशाना लग गया …………! पर यकीन मानो ज्यादातर खुश तो मैं ही रहता हूँ वो तो कभी कभी ही होती हैं।
वर्माजी की बात मेरी समझ से ऊपर जा रहीं थीं लेकिन श्रीमतीं जी सब समझ रहीं थीं और उनके जाते ही मेरे सामने आकर खड़ी हो गयीं मूड कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा था मैंने भांप कर, कुछ मुस्कराकर और रिझाने के अंदाज में गाना शुरू किया ” न कजरे की धार, न मोतियों के हार, न कोई किया श्रृंगार, फिर भी कितनी सुन्दर हो ……….!
वो बोलीं ” साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते की मेक अप के सामान के लिए पैसे नहीं देना चाहते ……..!’
अबकी बार मेरी बत्ती गुल ……… ये तो अपने ही सिर आ पड़ा ……… मैंने कहा ” अरे बेग़म, आपके लिए पैसे क्या ये नाचीज़ खुद हाज़िर है।”
वो बोलीं ” ठीक कहा, इस नाचीज़ के बदले बाज़ार में एक भी चीज़ नहीं मिलेगी। मैंने सोचा एक चुप हज़ार को हराता है इसलिए अब तो शान्ति में ही शान्ति है वर्ना श्रीमतीजी प्यार का इज़हार कर ही देंगी वैसे भी इसके लिए लालायित हैं। तभी वर्माजी दौड़ते हुए आये …. और बोले यार गुप्ता बचाओ बड़ी गड़बड़ हो गयी है ……..
मैंने कहा “अरे आराम से बैठो, इतनी हडबडाहट में क्यों हो और ये इतनी रात गए क्यों परेशान हो ………?
वो बोले ” हुआ यूँ की हमारी साली साहिबा आयीं हुईं हैं हमारी मैडम और वो जुड़वाँ बहने हैं, बस मैं अपनी साली को बीवी समझ बैठा, बस श्रीमतीजी गुस्सा हो गयीं।
यार गुस्सा होने वाली बात तो है, तुम धोखा कैसे खा सकते हो अपनी बीवी की जगह साली को बीवी समझ बैठे ……..
वर्माजी बोले : यार बहुत सिमिलरिटी है मेरी जगह तुम होते तो तुम भी नहीं पहचान पाते।
मैं तो पहचानता ही नहीं ………… खैर अब क्या हुआ …….. भाभीजी कहाँ हैं और ………….
बीच में काटकर वर्माजी बोलने लगे ” यार मैं रोज़ की खटपट से परेशान हो चुका हूँ कुछ करो……
लेकिन तुम तो कहते हो की जिनमें प्यार होता है झगडा भी उन्ही में होता है तो फिर ये तो प्यार का इज़हार ही है न फिर क्यों चिंता करते हो ………. तुम तो अपनी वाइफ को बहुत प्यार करते हो सुबह ही गालों की लाली गवाही दे रही थी
अरे वाइफ़ का मतलब होता है विदाउट इनफार्मेशन फाइटिंग एवेरी टाइम ………. हर समय झगडा …….. कुछ करो यार बहुत परेशान हूँ
इस से पहले की मैं कुछ कहता मिसेज़ वर्मा पीछे से आ गयीं और बोलीं ” वाइफ का मतलब होता है विद इडियट फॉर एवर ……
भाई साहब आप ही इन्हें समझाइये, मैं तो इनकी हरकतों से परेशान हो चुकीं हूँ ………
मैंने उन दोनों को शान्ति से बैठाया और समझाया, फिर हंसी ख़ुशी इस उम्मीद के साथ विदा किया की वो इस सिद्धांत पर अमल नहीं करेंगे की प्यार करने वाले ही झगडा करते। अब बारी श्रीमतीजी की थी आखिर वो भी सुबह से प्यार का इज़हार अलग अंदाज़ में बयाँ करने के लिए आतुर थीं।
मैं कुछ साहस बंधाता हुआ कमरे में गया, वहां की फिजां बदली हुई थी श्रीमती गुनगुना रहीं थीं ” मैं तो प्यार के तेरे पिया माँग सजाऊँगी, तेरे अंगना मैं सारी उमरिया बिताउंगी …………”
मैं समझ गया की अब श्रीमती जी को शायद वर्माजी टाइप के प्यार की आवश्यकता नहीं है, वो समझ गयीं थीं की प्यार हो या झगडा, घर की चारदीवारी के अन्दर ही रहना चाहिए, घर से बाहर निकलते ही वो तमाशा बन जाता है जो फिर चर्चा का विषय बन जाता है वास्तव में जिसका समाधान अदालतों के पास भी नहीं है सिवाय इसके की अलग अलग कर दिया जाए …….!
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