Menu
blogid : 2804 postid : 404

मेरा जीवन मेरी मृत्यु

JANMANCH
JANMANCH
  • 75 Posts
  • 1286 Comments

जो पैदा हुआ है मरेगा भी
ऐसा श्री कृष्ण ने कहा था।
ये तो नश्वर शरीर है
छूटना ही था।
सो,
मैं भी मर गया।
मरते ही शरीर भी छूट गया
मैंने शरीर को देख सोचा।
ये ही वो स्थूल शरीर है
जो कार्य करने को विवश था।
जिस पर,
घर में बीवी का,
और ऑफिस में
बॉस का वर्चस्व था।
घर में रोटी पकाता था,
ऑफिस में अटैंची उठाता था
चलो शुक्र है,
इस संसार से मुक्ति मिली।
रोटी बनाने से छुट्टी मिली।
वो बॉस और
अटैंची प्रथ्वी पर ही रह गए।
हम स्वर्ग की राह पर ठाट से आगे बढ़ गए।
वैसे
कम उम्र में कुछ ही लोग ऊपर जाते हैं।
सुना है भगवान् ,
अच्छे लोगों को ही जल्दी बुलाते हैं।
मेरे मरने से दूध का दूध
और पानी का पानी हो गया।
बीवी और बॉस बुरे थे
ये निश्चित हो गया।
अब तो स्वर्ग के स्वप्न आ रहे थे।
हम अप्सराओं के संग नाच-गा रहे थे।
की अचानक
बॉस का चेहरा दिखा।
अछे सपने का बुरा अंत हुआ।
देखा तो वो बॉस ही थे
साथ में
अटैंची और सूटकेस थे।
वो देख कर मुस्कराए,
जैसे शिकारी का शिकार का इरादा हो।
पुछा -!
कहो मुनीष कैसे हो ?
मैंने कहा
सर आपकी दुआ से “हम मर गए”
मृत्यु के सुख में
फिर दुःख के क्षण आ गए।
वो बोले
ये सूटकेस उठाओ
और मेरे पीछे – पीछे आओ।
सुनकर झटका लगा कहा :
मैं अब आपका नौकर नहीं हूँ
मैं तो मर चुका हूँ।
हम भी मर चुके हैं
बॉस बोले
हम भी मर चुके हैं,
यहाँ पर फिर से बॉस बने हैं
ईश्वर ने ही,
हमें भी ऊपर बुलाया
और हर नए,
मरकर आने वालों का
हमको बॉस बनाया
तू भी –
मेरे अंडर में काम करेगा,
अब अटैंची नहीं सूटकेस उठाया करेगा।
और
तेरा सारा परिवार भी आ गया है
तुझको उनका भी खाना बनाना है
सुनकर मेरे ऊपर तो
वज्रपात हो गया
मेरा तो स्वर्ग भी नर्क हो गया
मैंने भागकर
प्रभू के चरण पकड़ लिए
हे प्रभु
मैंने कौन से बुरे कर्म किये
जो मरकर भी जिन्दे के ही सामान हूँ
मेरा भविष्य मत बिगाडिये
मैं अब कहाँ इंसान हूँ।
क्या फायदा ऐसे मरने का
जो जिन्दा जैसा ही रहना है।
फिर तो
जिन्दा ही रह लेंगे
जब मर मरकर ही जीना है
प्रभु प्रसन्न हो गए
हम पुनः जिन्दा हो गए
अब ऐसी कवितायें लिख रहे हैं
जिन्हें पढ़कर पाठक
ऊपर उठ रहे हैं

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh