Menu
blogid : 2804 postid : 399

“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”

JANMANCH
JANMANCH
  • 75 Posts
  • 1286 Comments

उफ़ ! इतना दुःख
अब सहा भी न जाता
ये राज
किसी से कहा भी न जाता
मनों वज़न मेरे मन पर धरा था,
सच कह रहा हूँ
मैं बहुत दुखी था।
दुखों को दूर करने का
मैंने इरादा कर लिया,
कड़ा मन करके
आत्महत्या का प्रण लिया
फिर भी कुछ शंका
मेरे मन में उभर रही थी
आत्महत्या करना
कोई अच्छी बात तो न थी
लोग –
जाने क्या क्या कहेंगे
पड़ोसी बातें करेंगे, सम्बन्धी रोयेंगे।
मैंने मन को समझाया
भगवान् राम
का स्मरण हो आया।
भगवान् ने
सरयू में डूबकर प्राण गवाएं थे,
हम कैसे पीछे रह सकते हैं।
उन्होंने
आत्महत्या का आगाज़ किया,
हम अंजाम तक पहुंचा सकते हैं।
फिर भी,
हम चुपचाप नहीं मर सकते थे
किसी से कुछ
छिपा नहीं सकते थे।
आखिर,
मरने ही तो जाना था
इसमें किसी से क्या छिपाना था।
ये सोच कर मित्र को बताया
हालेगम कह सुनाया
“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”
और सिर्फ तुम्ही को बता रहा हूँ
मित्र ने कान हिलाए,
फिर गाल बजाये –
” कुछ नोट-शोट मिलें तो हम भी चलें”
सूरा सुंदरी मिले तो यहाँ क्यों रहें।
मैंने समझाया
मित्र
“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”
और सिर्फ तुम्ही को बता रहा हूँ
वो बोला
काम कुछ बुरा नहीं चाहे जो करो
जहां पैसा न हो वहाँ मत रहो,
पर एक बात ध्यान रखना
पैसा पाते ही
मुझे मत भूल जाना।
कुछ अटपटा लगा
ये कुछ सीरियस ही नहीं है
हम मर रहे हैं
और इसे सुरा सुंदरी दिख रही है।
इसे छोडो, मैं भाई को बतलाता हूँ
मरने का कार्यक्रम
उसी को समझाता हूँ
वो छोटा भाई है तुरंत समझ जाएगा
अंत समय में अपना ही काम आएगा।
ये सोच भाई को कहा
“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”
और सिर्फ तुम्ही को बता रहा हूँ
वो बोला –
जा रहे हो तो जाओ,
पर मेरे लिए
क्या लाओगे ये बताओ।
हर बार की तरह हाथ हिलाते मत चले आना
कम से कम एक टाफी ही दाल लाना।
सुनकर
झटका लगा,
मैं सोचने लगा
इस दुनियां में कोई अपना नहीं है,
किसी को सुंदरी की
तो किसी को टाफी की लगी है
अब
मम्मी का ख़याल आया
घने अँधेरे में
उजाला नज़र आया।
आखिर मरने जाना था
किसी को तो बताना था
मम्मी को ही बताता हूँ
फिर किसी नदी में डूब जाता हूँ
ये सोच
मम्मी से कहा
“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”
और सिर्फ तुम्ही …………………!
वो बोली
जा रहा है तो जा
पर संभल कर जाना
शाम होते ही लौट आना।
किसी से मत झगड़ना
पैसा संभाल कर रखना।
आज अहसास हुआ
कृष्ण ने “गीता” का उपदेश क्यों दिया था
सबको छोड़ कर,
मैं ही, “मोह” के
भ्रमजाल में फंसा था
सभी ज्ञानी ध्यानी थे
मैं ही अज्ञानी था
पर क्या करूँ
मोह फिर भी न गया
पिताजी का ख़याल आ गया
सोचा
पिता जी को ही बताता हूँ
फिर हलाहल खाता हूँ
मैं पिताजी के समक्ष आया
थोडा सहमा थोडा घबराया
फिर साहस कर बोला –
“मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ”
और सिर्फ तुम्ही को बता रहा हूँ
वो बोले –
पढ़ाई में दिमाग लगाते नहीं हो,
घर में कभी टिकते नहीं हो।
“जीन कसे घोड़े” की तरह घुमते हो,
और हमें बेवकूफ समझते हो।
पहले बैठकर पढ़ाई करोगे,
फिर घर का काम करोगे।
फिर बाज़ार से सब्जी लाना,
तब जहां जाना हो चले जाना।
पिताजी की फटकार से
मूड खराब हो गया,
मरने का कार्यक्रम चौपट हो गया।
भला
खराब मन से भी कोई
अच्छा कार्य होता है,
और इतनी डांट सुनकर भी कोई मरता है।
अब तो मैं,
बुढापे तक सब की छाती पर मूंग दलूँगा
पर अफ़सोस,
भगवान् राम नहीं बन सकूंगा।
(कृपया पाठकगण भगवान् राम के प्रसंग को अन्यथा न लें)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh