यही जीवन का अंतिम सत्य है ………. ! जो पैदा हुआ है वो मरेगा भी, और नेता जी भी …………… वासी हो गए (रिक्त स्थान आप स्वयं भर लें ये पाठकों के अपने विवेक पर है ) . उनके निवास स्थान पर भारी भीड़ थी क्या पक्ष क्या विपक्ष अंतिम समय में सभी उनके साथ थे परिवार के सदस्य भी सब मौजूद थे, नेताजी की अंतिम यात्रा की तैयारी चल रही थी, अब क्योंकि मेरे पड़ोस का मामला था तो मैं भी अंतिम यात्रा में शामिल होने को पहुँच गया था, यूँ तो नेताजी से मेरी मुलाक़ात कभी कभार ही होती थी परन्तु थे तो पडोसी ही और सोचा चलो जीते जी तो इनसे कुछ फायदा उठा न सके तो इनके मरने का ही कुछ फायदा उठा लें …… एक आध बड़े आदमी से जान पहचान हो जायेगी.
ये बात ( की मैं अपने स्वार्थ की वजह से नेता जी की अंतिम यात्रा में शामिल हो रहा हूँ ) नेताजी की आत्मा को पता चल गयी जो तब तक वहीँ मंडरा रही थी, वो मेरे से बोली ……. तू तो भला आदमी है तू भी स्वार्थ के कारण मेरी अंतिम यात्रा में आया है, मैंने आत्मा को समझाया नहीं ऐसा कुछ नहीं है मैं वास्तव में आपसे बहुत ही ज्यादा प्रभावित था इसलिए ही यात्रा में शामिल हूँ आपका पडोसी भी हूँ…….. ! तो पडोसी जी पहले तो कभी तुमने पडोसी धर्म नहीं निभाया और आज मेरे मरने का फायदा उठाने चले आये …….! तुम नेता तो नहीं हो फिर मन में इतनी कालोंस कैसे …..? नेताजी की आत्मा मुझे दुत्कार रही थी ……….! मैंने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं है यदि आपको मेरी सोच से कष्ट हुआ है तो मैं अपनी सोच को वैसे ही वापस लेता हूँ जैसे संसद में नेतागण अपने शब्द वापस ले लेते हैं. आत्मा को कुछ तसल्ली हुई वो मेरे ही पास खड़ी रही.
नेता जी बड़े ही सेकुलरवादी नेता थे, आजीवन उन्होंने सांप्रदायिकता का विरोध किया था, चाहे उसके लिए उन्हें धर्म के विपरीत ही कुछ क्यों न करना पड़ा हो, लेकिन उन्होंने अपना सेकुलर द्रष्टिकोण नहीं छोड़ा. शायद इसी वज़ह से आज उनकी अंतिम यात्रा में सभी सम्प्रादायों के लोग आये थे. अंतिम यात्रा का समय हुआ लोगों ने अर्थी को उठाया और चलते हुए कहने लगे ” राम नाम सत्य है” लेकिन अभी अर्थी को लेकर दो चार कदम ही चले होंगे की एक पार्टी नेता ने कहा ये तो नेता जी के विचारों का अपमान है इस वाक्य में तो सांप्रदायिकता की ” बु ” आती है कोई ये नहीं बोलेगा की ” राम नाम सत्य है ” पारिवारिक लोग असमंजस में आ गए. तभी दुसरे दल के नेताजी निकल आये और बोले…………. ये क्या लगा रखा है राम नाम सत्य है नहीं बोलेंगे तो क्या बोलेंगे, नेताजी हिन्दू थे और हिन्दू धर्म में अंतिम यात्रा के समय ये पंक्ति बोलते हैं ……..!
नहीं ….! , नेता जी हिन्दू नहीं थे सेकुलर थे इसलिए उनकी अंतिम यात्रा में कोई भी साम्प्रदायिक शब्द नहीं बोला जाएगा .
ऐसा कैसे हो सकता है ये तो बोला ही जाएगा ………?
नहीं नेता जी ने तो अदालत में लिख कर दिया था की कोई ” राम ” नहीं हैं तो आज कैसे राम नाम को सत्य मान लें.
अच्छा तो किसके नाम को सत्य मानेंगे ……. विरोधी दल के नेताजी ने मुहं बनाते हुए कहा
सच और झूठ से मतलब नहीं है ……. बस राम का नाम नहीं बोला जाएगा,
नेताजी के परिवार के लोग कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन उन्हें कोई बोलने नहीं दे रहा था, इस बीच मैंने आत्मा से पुछा ” बताइये नेताजी क्या करना है ……. “राम नाम सत्य है की नहीं है बोलें या न बोलें” नेता जी की आत्मा भी पूरी राजनीतिज्ञ थी बोली ” अब तो ये आप लोगों के वाद विवाद का विषय है आत्माएं साम्प्रादायिक या गैर साम्प्रदायिक नहीं हुआ करतीं.”
मैंने कहा जब मरने के बाद ऐसा ही बोलना था तो ये जिंदगी भर क्यों साम्प्रदायिकता का बीज बोते रहे ………..!
नेता जी ने कहा ” देखो वो मेरे विचार मरने से पहले थे …………! और उस समय मैं ऐसा मानता था की “राम” नाम साम्प्रदायिक होता है
तो क्या आपको ये नहीं पता था की एक दिन तो आप भी मरोगे ………… तब क्या राम नाम सत्य है न बोला जाएगा …..?
तो मरने के बाद मैंने थोड़े ही ” राम नाम सत्य है बोलना है “……….. ये तो जनता ने बोलना है …….वो बोले या न बोले ये तो मैं तो जनता को नहीं समझा सकता ?
इस बात का प्रश्न या उत्तर मेरे पास नहीं था परन्तु नेता जी की अर्थी पर अब विवाद बढ़ने लगा था लेकिन दोनों ही पक्ष झुकने वाले नहीं थे, थोड़ी ही देर में नेता जी की पार्टी के कुछ नेताओं ने अर्थी के फूल उठा लिए और बोले ” क्योंकि नेता जी सेकुलर थे इसलिए हम उनकी अर्थी के फूल लिए जाते हैं और इनको कब्र में दफ़न करेंगे ………! विपक्ष के नेता भी भड़क गए और नेता जी की अंतिम यात्रा बीच में छोड़ कर भाग गए …….. बस परिवार के लोग रह गए …………!
आगे वही हुआ जो अंतिम यात्रा में सबके साथ होता है ……. चिता जलने के साथ ही नेताजी की आत्मा भी परम ब्रह्म में लीन हो गयी, बस मेरी ही साध न पूरी हो सकी जिस विचार के साथ में अंतिम यात्रा में शामिल होने गया था …….. वो अपूर्ण ही रह गया
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