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जानवर बने इंसान

JANMANCH
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ना ना ना, आप लोग शीर्षक पर ना जायें, मैं किसी इंसान के जानवर बनने की दास्तान नहीं लिख रहा हूँ और ना ही किसी की बुराई कर रहा हूँ मैं तो विकासवाद के सिद्धांत पर टिप्पड़ी कर रहा हूँ, पहले पहल जब मैंने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पढ़ा जिसमें उन्होंने बताया की इंसान के पूर्वज बन्दर थे तो मुझे लगा की शायद डार्विन महोदय अपने पूर्वजों के विषय में लिख रहे होंगे और मैंने उनके विकासवाद के सिद्धांत को सिरे से खारिज कर दिया जैसे सरकार कैग की रिपोर्ट को कर देती है .


लेकिन वक्त सब कुछ सिखा देता है समझा देता हैं जो सिद्धांत मैं विद्यार्थी जीवन में ना समझ सका वो अब समझ आ गया जब हर जगह मुझे विकासवाद का सिद्धांत ही नज़र आ रहा है जैसे बन्दर धीरे धीरे विकास करके इंसान बनगए अब वैसे ही अन्य जानवर भी इसी राह पर चल निकले हैं ………! और इंसान के विकास का तो कहना ही क्या जिस रफ़्तार से इंसान विकास कर रहा है उस हिसाब से तो इंसान का इंसान बने रहना ही मुश्किल हो गया है …………. ! अब ये तो कह नहीं सकता की बन्दर विकासवाद के सिद्धांत पर चलकर इंसान बने तो अब इंसान देवता बनेगा या भगवान् परन्तु ये जरूर कह सकता हूँ की अन्य जानवर भी इसी तरह से विकासवाद के सिद्धांत पर चलते रहे तो वो भी इंसान बन जायेंगे और धरती पर जनसँख्या की समस्या विकट रूप ले लेगी ……..!


मैं दूर नहीं जाऊँगा कभी इंसान का सबसे वफादार रहा जानवर कुत्ता भी अब इंसान बनने की ओर अग्रसर है. कुछ इंसानी गुण कुत्ते में आने लगे हैं. आजकल के मोहल्ले के आवारा कुत्ते, पुराने कुत्तों की तरह नहीं हैं की कोई अनजान व्यक्ति मोहल्ले में आ जाए वो उस पर भोंक भोंक कर पूरे मोहाले को सावधान कर दें अब तो वो आँख मूँद कर पड़े रहते हैं, ( इंसानों का भी ये नैसर्गिक गुण है की जब तक समस्या सर पर ना आ जाए वो भी सोते ही रहते हैं. ) और यदि किसी दुसरे मोहल्ले का कुत्ता आ जाएगा तो भाई साहब यकीन मानिए यही कुत्ते शेर बन जाते हैं और इस कदर भोंकते हैं की जैसे वो कुत्ता कुत्ता ना हो इंसान हो. बिलकुल इंसानी आदत इंसान भी इंसान को देखकर काटने दौड़ता है और कुत्तों को गले लगाता है.


सिर्फ इतना ही नहीं आजकल के कुत्ते बीच सड़क पर चलते हैं आप कितना ही होर्न दीजिये मजाल क्या जो आगे से हट जायें …….. इंसानी फितरत जो ठहरी ………. इसलिए आप लोगों ने ध्यान भी दिया होगा आजकल सड़क दुर्घटनाओं में यहाँ वहाँ कुत्तों को मरे हुए देखा होगा ……. अब किसी ने कहाँ सोचा होगा की कुत्ता इंसान की मौत मरेगा, ये सब हो रहा है केवल विकासवाद के सिद्धांत के कारण ……. हाँ एक और आदत जो कुत्ते ने अपनाई है वो भी यहाँ वहाँ इंसान की भाँती खम्बे के पास टांग उठा देता है………..! और आपने देखा होगा कुछ अंग्रेज टाइप के कुत्ते अक्सर आवारा कुत्तों पर भोंकते हैं जब वो अपने मालिक के साथ होते हैं लेकिन कहीं वो अंग्रेजी कुत्ता अकेले मैं उन देसी कुत्तों को मिल जाता है तो वो उसको १८५७ की क्रान्ति याद दिला देते हैं और तब तक नहीं छोड़ते जब तक वो अस्पताल ना पहुँच जाए या वापस दुम दबाकर घर में ना घुस जाए .


मैं ये नहीं कह रहा हूँ की केवल कुत्ते ही विकास कर रहे हैं और बाकी जानवर विकास नहीं कर रहे हैं अपने अपने हिसाब से सभी विकास कर रहे हैं जैसे केकड़ा वो स्वयं अपने ही लोगों की टांग खेंचने में लगा रहता है तो सांप हमेशा दूसरों के घरों पर कब्ज़ा कर लेता है, गीदड़ हमेशा इस फिराक में रहता है की कोई जानवर शिकार करे और उसे खाने को मुफ्त में मिल जाए, भैंसे और बैल को देखिये सड़क पर चलेंगे और मुख से लार टपकाते चलेंगे जैसे गुटखा खा लिया हो, हाँ गधा मेहनत के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा इसीलिए वर्षों से गधा ही है कुछ इंसान भी गधे बनकर रह गए हैं परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है की विकास नहीं हो रहा है विकास हो रहा है और धड़ल्ले से हो रहा है एक आध अपवाद से सिद्धांत नहीं बदला करते . विकासवाद का सिद्धांत गलत नहीं है अब बस यही इंतज़ार है की या तो इतना विकास हो की इंसान देवता बन जाए अन्यथा इंसान ही बना रहे कुछ और नहीं ………!

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