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छदम सेकुलरिज्म

JANMANCH
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जब जब नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार तौर पर आता है तब तब बाकी नेताओं को सेकुलरिज्म का भूत चढ़ जाता है, आजादी पूर्व से आज तक जितना नुक्सान देश को इन सेकुलर नेताओं ने पहुंचाया है उतना किसी कथित तौर पर साम्प्रदायिक नेता ने नहीं किया या यूँ कहिये इन कथित साम्प्रदायिक  नेताओं से राष्ट्र को कोई हानि नहीं हुई. लेकिन फिर भी इन  नेताओं को उभरने से रोका गया, चाहे वो आजादी पूर्व लाला लाजपत राय हों, या लाला हरदयाल,  वीर सावरकरहों या  डॉ हेडगेवार  यहाँ तक की इन तथाकथित सेकुलर नेताओं ने क्रांतिकारियों को भी उचित सम्मान इतिहास में नहीं मिलने दिया. हमारे राष्ट्र को साम्प्रदायों में बांटा इन सेकुलर नेताओं ने, राष्ट्रवादी नेताओं को एक अछूत सा जीवन जीने पर मजबूर किया इन सेकुलर नेताओं ने अब चाहे वो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हों या सावरकर दोनों को अपने ही देश में उचित सम्मान नहीं मिल सका और इस सब के बावजूद हम इन सेकुलर नेताओं के बहकावे में आ जाते हैं.


जिन्ना जैसे राष्ट्रवादी को इन सेकुलर नेताओं की नीतियों ने घोर साम्प्रदायिक बना दिया,  जिसका इस देश से कोई लेना देना नहीं उस खिलाफत आन्दोलन का समर्थन ये सेकुलर लोग करते हैं वन्देमातरम का विरोध ये सेकुलर नेता करते हैं मोपला विद्रोह का समर्थन ये स्कुलर लोग करते हैं  लीग की सीधी कार्यवाही पर ये सेकुलर नेता मौन रहते हैं,  देश का विभाजन इन सेकुलर नेताओं के सामने हुआ न की साम्प्रदायिक नेताओं के सामने और इन्होने स्वीकार किया. जनता ने इन पर विश्वास किया और इन्होने जनता को छोटे छोटे लालच देकर उसके स्वार्थ में उलझाए रखा देश को धोखा दिया और विभिन्न जातियों और सम्प्रदायों में खाई पैदा की,   कश्मीर समस्या सेकुलर नेताओं की देन है और जहां श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेता इन दोगली नीतियों के विरोध में उतरते हैं और शहीद होते हैं परन्तु इतिहासकार मौन सेकुलर नेताओं की चाटुकारिता में और इतिहास आंसू बहा रहा है,  जब हम एक  राष्ट्र की बात करते हैं तो क्यों सम्प्रदायों के आधार पर नीतियाँ बनायी जाती हैं. क्यों इन सेकुलर नेताओं के लिए धर्म-सम्प्रदाय एक राष्ट्र से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं. और जनता राष्ट्रहित पर स्वार्थ को क्यों महत्त्व देती है.

आजादी के बाद से आज तक लगभग हर वर्ष साम्प्रदायिक दंगे देश के विभिन्न राज्यों, शहरों में हुए कांग्रेस के शाशन काल में भी बी जे पी के भी कम्युनिस्टों के भी लेकिन इस कदर कभी भी कोई नेता राजनितिक दल और मीडिया किसी के मुखर विरोध पर उतारू नहीं हुआ जैसा की नरेन्द्र मोदी के …….! तो क्या ये माना जाए की जो दंगे सेकुलर सरकार के समय हुए वो सेकुलर दंगे थे और जो साम्प्रदायिक सरकार के समय हुए वो साम्प्रदायिक दंगे ……… !

मैंने इसी मंच पर पढ़ा है की मोदी को गुजरात दंगों के लिए अल्पसंख्यकों से माफ़ी मांगनी चाहिए ………! क्यों और किसलिए ? जबकि एस आई टी तक ने गुजरात दंगों के लिए मोदी को जिम्मेदार नहीं माना और उनके पक्ष में न्यायालय का निर्णय भी आ गया है तब किस बात की माफ़ी ……… और यदि माफ़ी मांगनी ही है तो क्या अल्पसंख्यक समुदाय और सेकुलर नेता गोधरा के लिए माफ़ी मांगने को तैयार हैं, ऐसा नहीं है की २००२ में ही गुजरात में दंगे हुए इससे पूर्व नहीं हुए बल्कि इससे पहले १९९२, १९९०, १९८६,१९८५, १९८२, १९६९ में भी गुजरात में दंगे हुए और बहुसंख्यक समुदाय का नुक्सान हुआ तो क्या ये  सेकुलर नेता इन दंगों  के लिए माफ़ी मांगने के लिए तैयार हैं बंगाल में १९६४ में दंगों में हज़ारों लोग मारे जाते हैं लेकिन सेकुलर नेता माफ़ी नहीं मांगते, और सबसे महत्वपूर्ण बात ये की ये सेकुलर नेता जिस आज़ादी को याद कर जश्न मनाते हैं , उसी दिन हुए भारत के विभाजन के लिए देश से कब माफ़ी मांगेंगे जिसमें लाखों लोग बेघर हुए मारे गए, बच्चे अनाथ हुए.  कुछ लोग कहेंगे की हमें हर घटना का सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए तो क्या आँखों पर पट्टी बांधकर उन तथ्यों का समर्थन सेकुलरिस्म के नाम पर करें जिनका दंश देश आज तक झेल रहा है. ये सब किसी साम्प्रदायिक नेता के कारण नहीं बल्कि सेकुलर नेताओं के कारण हुआ.

नितीश कुमार को छदम सेकुलरिज्म के नाम पर उन लोगों से गलबहियां करने में कोई शर्म नहीं हैं जो हज़ारों लाखों करोड़ों के घोटाले कर रहे हैं राष्ट्र की संपत्ति को हड़प रहे हैं देश की भोली भाली जनता को मूर्ख बना रहे हैं परन्तु उस नाम से भी परहेज़ है जिसको देश के एक राज्य की जनता लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनाती है उसको विकास पुरुष का दर्जा देती है. तो क्या ये उस राज्य की जनता का अपमान नहीं है सिर्फ सेकुलरिज्म नाम पर, क्या  मीडिया अपमान नहीं कर रहा करोड़ों लोगों की भावनाओं का, सिर्फ सेकुलरिज्म के नाम पर………! सेकुलर बनना बहुत आसान है आपको अल्पसंख्यकों के लिए कुछ भी नहीं करना सिर्फ हिन्दुओं को गाली देनी है.
मैं तो आज तक ये नहीं समझ पाया की मुसलामानों को आज तक क्या सेकुलरिज्म से…..!  काश वो भी इस सेकुलर झूठ को समझ पाते और एक राष्ट्र के सम्मान को मजहबी चश्मे से न देखते तो सेकुलरिज्म के नाम पर देश के साथ इतना बड़ा धोखा न होता, दंगे न होते, न कश्मीर मुद्दा होता और शायद न देश बंटता.

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