अभी कुछ दिनों पूर्व ही मैंने सोचा की क्यों न मैं भी सक्रिय राजनीति में हिस्सा लूँ. क्योंकि जब तक मुझ जैसे अच्छे लोग (मैं ऐसा मानता हूँ की मैं अच्छा हूँ) राजनीति में नहीं आयेंगे तब तक वो गन्दी ही रहनी है, अब कुछ साफ़ सफाई का काम तो हमें भी करना चाहिए की नहीं. यही सोचकर की राजनितिक क्षेत्र की थोड़ी सफाई की जाए तो मैं भी इस क्षेत्र मैं कूद गया.
राजनीति में आते ही मेरे अन्दर चमत्कारिक परिवर्तन हुआ. जो सरकारी – गैरसरकारी, क्रिया कलाप हमारी समझ में नहीं आते थे वो तुरंत आ गए, और लगने लगा की हम नाहक ही सरकार को दोष देते रहते थे वो तो बिलकुल ठीक कर रही है और हर निति – अनीति के पीछे केवल और केवल राष्ट्र हित ही हैं.
आज़ादी के बाद सरकार की पहली समस्या गरीबी की थी सारी दुनिया ये मानती थी की भारत एक गरीब देश है, जबकि हमारे देश की जनता समझती थी की भारत तो “सोने की चिड़िया” थी तो ये क्या हुआ की हम गरीब हो गए और देश की जनता का विश्वास डगमगाने लगा. वास्तव में ये विदेशियों की चाल थी की हम भारतीयों में कभी आत्म विश्वास न पनपने पाए……! आजादी के बाद दो – चार साल में ही हमारे दूरदर्शी नेताओं को लगा की जनता को यह अहसास कराना जरूरी है की हम गरीब नहीं हैं. और इसी के मद्देनजर “जीप घोटाला” किया गया, और जनता को लगा की हम गरीब नहीं हैं इसीलिए तो घोटाला कर पाए यदि गरीब होते तो कहाँ से घोटाला कर पाते. और तब से आज तक हमारे नेता राजनेता समय समय पर घोटाला करके देश की जनता को यह अहसास कराते हैं की हमारा देश गरीब नहीं है बल्कि आज भी सोने की चिड़िया है, और जनता का मनोबल बढाए रखते हैं जो राष्ट्रहित में बहुत जरूरी है.
देश की गरीब जनता को रोज़गार दिलाना सरकार के लिए बहुत कठिन कार्य था, सरकार चाहती थी की लोग आत्म निर्भर बनें न की नौकरी की तलाश में दर दर भटकें क्योंकि अनपढ़ जनता को नौकरी पर तो वैसे भी कोई नहीं रखता इसलिए सरकार ने लघु उद्योग धन्दों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित करना शुरू किया जैसे सड़कों का निर्माण घटिया करवाया, जिससे सडकें जल्दी टूट जातीं और आने जाने वाले वाहन क्षतिग्रस्त होने लगे लोगों ने वहीँ सड़क के पास बैठकर मिस्त्री की, पंचर लगाने की, स्पेयर पार्ट्स की दूकाने खोल लीं और लोगों को रोज़गार मिला, जो ठेकेदार घटिया सड़क बनाते उन्हें भी सड़क जल्दी टूट जाने के कारण जल्दी जल्दी ठेके मिलते और वो अपने कार्य में व्यस्त रहते ……..! केवल एक घटिया सड़क बनाने से लाखों लोगों को रोज़गार मिल गया…….! ये निति मुझे तब समझ आई जब मैं राजनीति में आया वर्ना टूटी सड़कों के लिए सरकार को गाली ही देता रहता था.
अभी कुछ दिनों पूर्व प्रधानमन्त्री जी ने भारत में कुपोषण की रिपोर्ट आने पर शर्मिंदगी ज़ाहिर की थी. वास्तव में उन्होंने कुपोषण के ऊपर कोई शर्मिंदगी ज़ाहिर नहीं की थी वरन उन लोगों की नासमझी पर शर्मिंदगी ज़ाहिर की जो ये कुपोषण की निति को समझ नहीं पाए. सरकार शुरू से कहती आई है की बच्चे दो ही अच्छे. लेकिन देश की जनता ये समझने को तैयार ही नहीं (वैसे भी नासमझ जो ठहरी ) तो सरकार ने सोचा की कोई ऐसी निति अपनाई जाए जिस से जनसँख्या पर नियंत्रण किया जा सके, इसी के अंतर्गत कुपोषणता फैलाई गयी जिस से देश की कुछ म्रत्यु दर बढ़ सके और जनसँख्या पर अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण हो सके. ये नशीले पदार्थों के सेवन को बढ़ावा इसी निति के अंतर्गत आता है और महँगी दवाई होने का कारण भी यही है.
सरकारी निति बिलकुल स्पष्ट हैं हिन्दू मुस्लिम भाई भाई की तर्ज पर उन्होंने मुस्लिम आतंकवाद – हिन्दू आतंकवाद बोलना शुरू किया. जिस से दोनों समुदाय के लोग सौहार्दपूर्ण ढंग से रहें और एकदूसरे पर ऊँगली न उठायें पर सरकार की निति तो कोई समझने की कोशिश ही नहीं करता क्योंकि आम जनता जो ठहरी मेरी तरह कुछ ख़ास बनने की कोशिश करो तभी तो कुछ समझ आएगा.
शिक्षा निति पर भी तरह तरह के सवाल उठाये जाते हैं की सरकार अपने इतिहास, ज्ञान – विज्ञान को प्रोत्साहन नहीं देती और विदशी शिक्षा पर जोर है. हमारे वेदों में ज्ञान का भण्डार है हमें उनको पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए. अब ज़रा सी बात जनता की समझ ही नहीं आती “अरे यदि ये ज्ञान के भण्डार हमने अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिए तो विदेशी लोग भी हमारा ज्ञान प्राप्त कर लेंगे और हमसे ज्यादा ज्ञानी हो जायेंगे. इसलिए हमारी सरकार ने इस ज्ञान के भण्डार को छुपाकर रखा है, और पाठ्यक्रम में नहीं जोड़ा. पर निति समझाने को कोई तैयार ही नहीं है.
आप उस व्यक्ति से तो कार्य करा सकते हैं जो योग्य है परन्तु जो योग्य ही नहीं है उस से कैसे करायेंगे ………….? खा गए न चक्कर, नहीं आई न समझ में ………..! लेकिन जिस दिन मेरी तरह राजनीति में आओगे तो तुरंत समझ आ जाएगा ………..! की जो योग्य ही नहीं उस से कार्य किस निति के अंतर्गत कराया जा सकता है. वही जिस से नासमझ व्यक्ति खुश नहीं रहते ….. आरक्षण निति . ये वो निति है जिस से आप अयोग्य से अयोग्य व्यक्ति से भी काम करा सकते हैं. और उसे पता भी नहीं चलने पता की वो उस काम के योग्य था या अयोग्य ………..!
सरकार की हर निति के पीछे वास्तव में राष्ट्रहित ही छिपा होता है परन्तु जनता इस भावना को अपने – अपने स्वार्थ के वशीभूत समझ ही नहीं पाती, वास्तव में मुझे तो लगता है जनता को सरकार के विरुद्ध बरगलाने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. उदाहरण के साथ समझाता हूँ. अब पाकिस्तान पर कुछ काम-धाम तो है नहीं तो वो दुसरे देशों के लोगों को बहकाता रहता है…… ! और हमारे यहाँ व्यक्ति ठहरे कर्मप्रधान, भगवदगीता में कहा भी गया है कर्म करो फल की चिंता मत करो……! इसलिए यहाँ के लोग कार्य करते समय केवल कर्म को ही महत्त्व देते हैं और ये आचार, विचार, भ्रष्टाचार पर ध्यान नहीं देते. अब वो नकारा लोग जो काम धाम तो कुछ करते नहीं और न ही उनके बसकी कुछ काम करना वो शोर करने लगते हैं भ्रष्टाचार – भ्रष्टाचार. मुझे तो ऐसे लोगों के पीछे पाकिस्तानी षड्यंत्र की बू आती है.
बहरहाल मेरा मानना ये है की जब तक जनता सरकारी नीतियों को न समझे तब तक उसे उन पर ऊँगली उठाने का कोई अधिकार नहीं और यदि नीतियाँ समझनी हैं तो फिर राजनीति में आयें सब समझ आ जायेंगी.
यदि कुछ ऐसी नीतियाँ हों जो आप लोगों की समझ न आ रही हों तो मुझसे पूछ सकते हैं में समझा दूंगा
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