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भगत सिंह को फिर फाँसी

JANMANCH
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अब रातें कुछ ठंडी होने लगीं थीं, हालांकि दिन के तापमान में अभी कोई ख़ास कमी नहीं आई थी. उस रात मैं अकेला ही घूमने निकल पड़ा, रात को खाना खाने के बाद कभी कभी मैं घूमने निकल जाता हूँ. रात के साढ़े-दस बज रहे थे सडकें लगभग सूनी हो चलीं थीं तो मैंने भी घर वापस चलने के विषय में सोचा, तभी मुझे तीन आदमी आते हुए नजर आये. जब वो मेरे पास से निकले तो मुझे लगा की शायद मैंने उन व्यक्तियों को कहीं देखा है. मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला तो एकाएक मुझे लगा की वो तो भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव हैं. मैं तुरंत दौड़कर उनके पास पहुंचा और आश्चर्यचकित होकर कहा……!” आप लोग और यहाँ……?

वो तीनों भी मुझे देखकर थोडा ठिठके तब थोडा संभलकर सुखदेव ने मुझसे पूछा …..क्या तुम हमें जानते हो? मैं बोला “हाँ हाँ क्यों नहीं आप महान क्रांतिकारी सुखदेव हैं,ये भगत सिंह और राजगुरु. तब भगत सिंह ने मुस्कराते हुए कहा ” वाह कमाल है….. हम तो यहाँ तीन दिन से घूम रहे हैं हमें किसी ने दिन के उजाले में भी नहीं पहचाना और तुमने रात में भी पहचान लिया……..! मैंने उनसे घर चलने का आग्रह किया और कहा जब तक आप लोग यहाँ हैं तो मेरे घर ही रुकेंगे, थोड़ी बहुत न नुकुर के बाद वो तैयार हो गए और मेरे साथ घर आ गए. खाना-वाना खाने के पश्चात हम चारों बातें करने बैठ गए. बातों ही बातों में मैंने उनको देश की आज की परिस्थितियों से अवगत करा दिया.

सब बातों को सुनकर भगत सिंह थोड़े भड़क कर बोले …………! तो हमारा देश स्वतंत्र कहाँ हुआ? ये तो सरासर देश की जनता के साथ धोखा है. जिस व्यवस्था के खिलाफ हमने तब आवाज उठाई थी वो जस की तस बनी हुई है तब वो व्यवस्था अंग्रेजों ने बनायी थी और आज उसी गुलाम मानसिकता वाले काले अंग्रेज उसको चलाये हुए हैं केवल अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इस देश की भोलीभाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.

मैं बोला ” आप गुस्सा होकर क्या कर सकते हैं…… जो भी आदमी कुछ करना चाहता है सरकार उसी के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर देती है चाहे वो कोई भी हो सब को सरकार षड्यंत्र रचकर अपने खिलाफ उठ रही जनता की आवाज को चुप कराना चाहती है ……… अब आप लोग सो जाइए कल सुबह बातें होंगी. भगत सिंह बोले ” तुम जाकर सो जाओ मुझे अभी नींद नहीं आ रही है. यदि तुम्हारे पास कुछ पढने के लिए हो तो दे दो …….! मेरे पास एक कॉपी “साम्प्रदायिक लक्ष्यित हिंसा अधिनियम २०११” जिसको की सरकार जल्द ही लाने वाली है पड़ी थी वो मैंने इन्टरनेट से डाउनलोड की थी वही मैंने उन्हें दे दी और सोने चला गया.

सुबह उठने के बाद जैसे ही मैं भगतसिंह राजगुरु और सुखदेव से मिलने गया तो जैसे वो मेरा ही इन्तजार कर रहे थे, मुझे देखते ही सुखदेव गुस्से से बोले ” तो क्या सरकार इस देश के टुकड़े-टुकड़े करना चाहती है………. पूरे देश को धार्मिक आधार पर बांटना चाहती है……. ये तो वही नीति है “फूट डालो और राज करो..”.अगर ये क़ानून आ गया तो देश पूरी तरह बँट जाएगा.
भगत सिंह ने कहा मुझे लगता है हमें पहले सभी बातों को विस्तार से समझना चाहिए……… उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा क्या तुम हमारी मदद करोगे. मैंने हामी भर दी मुझे लगा जैसे मेरे अन्दर जोश का संचार हो रहा है.

फिर मैंने उन्हें देश की स्थिति से अवगत कराते हुए भ्रष्टाचार , कालेधन और सरकार की दमनकारी नीतियों के विषय में बताया, पिछले दिनों देश में हुए आंदोलनों के विषय में बताया. ये सब सुनने के बाद भगत सिंह ने उत्तेजित हो गए तुरंत ही उन्होंने एक नई क्रान्ति का खाका तैयार किया. वो बोले हमें फिर से संसद में विस्फोट करना होगा…………….! ये सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा फ़ैल गया………….! मैं बोला लेकिन क्यों और कैसे?
क्योंकि अंधी और बहरी सरकार को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है, हम उस धमाके से किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाएंगे. ये तो केवल सरकार की आँख और कान खोलने के लिए होगा, और हम फिर से गिरफ्तार होंगे जिससे देश की जनता हमारा सन्देश समझे और राष्ट्रहित के मुद्दों पर चुप न रहे………..फिर मेरे से पूछा …..!  क्या तुम्हारे साथ कुछ लोग और भी आ सकते हैं जिन पर भरोसा किया जा सके…………….भगतसिंह ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.
हाँ हाँ, मैं जागरण मंच के सभी साथियों को बुला सकता हूँ …………..
नहीं सब की जरूरत नहीं है कुछ लोग ही चाहिए…………जो हमारा साथ दें बाकी लोग मंच पर यथावत लिखते रहें और हमारी क्रान्ति की आवाज देश के कोने कोने तक फैलाएं
तो ठीक है मैं मनोज जी, चातक जी, मिश्राजी, संदीप जी, राजकमल जी, वाहिद भाई और अबोध बालक को खबर कर देता हूँ…….!
तभी राजगुरु बोले (जो कल से अब तक कुछ नहीं बोले थे) …… नहीं नहीं बालकों को मत बुलाओ… वो तो वैसे भी अबोध हैं मासूम हैं.
मैंने सब को खबर कर दी……. तय हुआ आगामी संसद के अधिवेशन में बम छोड़ा जाएगा वो बम केवल जोर की आवाज के लिए होगा पर किसी को उस से नुक्सान नहीं होगा. बम फटने के बाद हम वहां पर अपनी मांगों के और बम छोड़ने के कारणों के पर्चे बांटेंगे, और साथ ही गिरफ्तार हो जायेंगे. बम बनाने का काम राजगुरु के साथ संदीप भाई करेंगे. जन जागरण का काम राजकमल जी वाहिद भाई और मनोज जी करेंगे स्वयम मैं चातक जी के साथ पर्चे बनाने का काम करूंगा . भगत सिंह और सुखदेव संसद भवन का मुआयना करेंगे और अन्दर पहुँचने का मार्ग तलाश करेंगे. और जागरण मंच के बाकी साथी हमारे विचारों को गति देने का काम करेंगे. बाद में यदि जरूरत पड़ी तो अदालत केस मिश्राजी देखेंगे.   काम अगले ही दिन से जोश के साथ परन्तु गुप्त रूप से शुरू हो गया.

दो दिन बाद शाम को सब लोग फिर मिले  …… भगत सिंह ने सबको संबोधित करते हुए कहा की संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी है परन्तु किसी लड़की का साथ मिले तो दर्शक दीर्धा तक आराम से पहुंचा जा सकता है लेकिन हो थोड़ी साहसी और चालाक ………. इतना कहते ही तमन्ना जी को फोन करके बुला लिया गया. उन्होंने हमारी मदद करना स्वीकार भी कर लिया. बाकी तैयारीयां चलती रहीं लोगों में जागरण का काम जोरों पर चलने लगा…………….

निश्चित दिन भी आ गया, सब लोग पूरी तैयारी के साथ संसद भवन पहुँच गए तमन्ना जी की मदद से भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तीनो संसद भवन के अन्दर पहुँच गए और बाकी लोगों ने बाहर का कार्य संभाला लोगों को बम का मकसद समझाने के लिए.

तीनों क्रांतिकारियों के साथ हम सब भी अदालत के कठघरे में खड़े थे उन तीनों ने तो अपनी गिरफ्तारी दे ही दी थी परन्तु पुलिस ने हम सब को भी ढूंढ निकाला था…… अदालत की कार्यवाही शुरू हुई

जज : तुम सब संसद भवन में विस्फोट के दोषी हो……… तुमने ऐसा क्यों किया?

भगत सिंह: हमने विस्फोट केवल सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए किया

जज : लेकिन ये लोकतंत्र है तुम अपनी बात अपने सांसदों के द्वारा भी सरकार तक पहुंचा सकते थे

भगत सिंह : भ्रष्टाचार से आकंठ डूबी व्यवस्था, आँख और कान बंद किये बैठी सरकार की समझ में केवल धमाकों की आवाज ही आ सकती थी.

जज : तो क्या तुम लोग अपनी बातें मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लोगे…..?

भगत सिंह : जो जिस भाषा को समझता हो उससे उसी भाषा में बात करनी चाहिए, सरकार अहिंसा का समर्थन नहीं करती इसलिए हमें बम का सहारा लेना पड़ा. वो हिंसा नहीं थी क्योंकि उस से कोई भी हताहत नहीं हुआ वो केवल अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का एक तरीका था.

जज : सरकार कौन सी हिंसा करती है……

भगत सिंह : प्रताड़ना भी हिंसा ही होती है……… यदि देश की जनता त्राहि त्राहि कर रही है, लोग आत्म हत्या के लिए विवश हैं, तो इस मानसिक हिंसा के लिए सरकार की नीतियाँ दोषी हैं.

जज : तो आखिर तुम लोग चाहते क्या हो…….?

भगत सिंह : हम अपने सपनों का भारत चाहते हैं, हम चाहते हैं की हम भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न   लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाएं जिसमें अपनी संस्कृति की सुगंध और विज्ञान के ज्ञान की गंगा बहती हो. जो सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक आधार पर बंटा न हो, न उंच नीच हो और न अमीर गरीब, अब कोई भूखा न रहे, न कोई तमिल हो न मराठी, न बंगाली न हिंदी, सब भारतीय हों. जहां सबके लिए एक न्याय व्यवस्था हो, जहां विचार, अभिव्यक्ति, विशवास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता हो, सबको समता का अधिकार प्राप्त, भारत अखंड हो कभी देश का बंटवारा न हो……….!

जज : सपनों का भारत हकीकत में चाहते हो……..?  सपनों की दुनिया से बाहर आओ और हकीकत का सामना करो…………! इस तरह की बातें किताबों में ही अच्छी लगती हैं………….

भगत सिंह: तो जज साहब, जब तक सपने पूरे नहीं होंगे धमाके होते रहेंगे……….! हम आप से राज गद्दी नहीं मांगते पर हम इतना जरूर चाहते हैं की कोई जमीन पर न सोये……. हम आपसे ये नहीं जानना चाहते की आप की थाली में पकवान क्यों हैं हम तो ये जानना चाहते हैं की हमारी थाली खाली क्यों है हम आपसे ये नहीं पूछते आपके महल इतने आलिशान क्यों हैं हम तो ये पूछते हैं की हमारे सर पर एक छप्पर भी क्यों नहीं………? जज साहब चाहे तो आप हमें फिर से फांसी पर चढ़ा दीजिये पर आप बस हमें हमारा सपनों का देश दिलवा दीजिये……………!

जज : लगता है तुम मूर्ख  हो……… सुनो….. जब तक तुम इस तरह की मागें करते रहोगे तब तक हर बार फांसी पर चढोगे………..! तुम क्या समझते हो तुम्हारी इन ऊट-पटांग बातों से इस देश की जनता जाग जायेगी ………….. बिलकुल नहीं…………… तुम हर जनम में फांसी चढ़ते रहो पर इन लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा………… अरे कोई बंद आँखों वाला हो तो जागे भी ……… खुली आँखों वालों को कोई नहीं जगा सकता………! तैयार हो जाओ फांसी के लिए…………….!   क्योंकि वो तो मेरी मजबूरी है मैं उसे रोक नहीं सकता  परन्तु तुम्हारे देशवासियों के लिए इतना जरूर कहूँगा की ” न समझोगे तो मिट जाओगे अ हिन्दुस्तान वालों, तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में”

(जज साहब ने रोते हुए फिर से तीनों को फांसी की सजा सुना दी और हम सबको उम्र कैद )

(आप सब से मेरा अनुरोध है की कृपया “साम्प्रदायिक लक्ष्यित हिंसा विधेयक २०११” को आप सब पढें और विचार व्यक्त करें ये इन्टरनेट पर मौजूद है)

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