- 75 Posts
- 1286 Comments
मेरे साथ भी जिंदगी अजीबोगरीब खेल खेलती है, बचपन से देखता चला आ रहा हूँ, जब ठीक से पढता नहीं था तो परीक्षा में पास हो जाता और जब पढ़ाई करता तो फेल! जब शरारत करता तो शाबाशी मिलती और नहीं करता तो पिटाई! और ये सिलसिला जब भी नहीं थमा जब मैं शादी योग्य हो गया! और देखिये जिंदगी का खेल जैसे ही इस योग्य हुए तो समाज में वैवाहिक रीतिरिवाज ही बदल गए, जो मान लड़के वालों का था वो लड़की वालों का हो गया और जो काम लड़की वालों का था वो लड़के वालों का हो गया! लडकियां बरात लाने लगीं और लड़के विदा होकर ससुराल जाने लगे.
समाज में ऐसा विषम परिवर्तन और वो भी जब मेरा शादी का नंबर आया तब! अब समाज में सब कुछ बदला बदला सा था और सच बताउं तो शायद हम लड़कों का हाल लड़कियों वाला था, अकसर अखबारो में खबर छपने लगी कि फलां जगह किसी लड़के कुछ लड़कियों ने छेड दिया या फलां जगह किसी लड़के को उठा लिया। अब तो लड़कों को घर से बाहर निकलना दूभर हो चला था। हमारे घर वालों को हम लड़कों की शादी की चिंता रहती और परिवार में रोज ही किसी न किसी लड़की की बातें होतीं.
मैं भी किसी कोने में छिपकर अपनी शादी की बातें सुना करता। कभी शर्माता था तो कभी घबराता था, उस दिन मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही था और मैं बहुत डर भी रहा था क्योंकि पहली बार किसी लड़की वाले ने मुझे देखने आना था मैं अपनी घबराहट को अपनी मुस्कराहट से छिपाने की कोशिश कर रहा था! घबराने के दो मुख्य कारण थे एक तो ऐसा पहली बार ही समाज में हो रहा था और दूसरा मैं ये सोचकर परेशान था कहीं लड़की ने मुझे देखकर मना कर दिया तो लोग क्या कहेंगे। तभी घर में हलचल सी बढ़ी, लड़की वाले आ गए! बताइये मुझे देखने ही आधी बरात ले आये थे। लड़की के मम्मी-पापा, चाचा-ताऊ, मामा-नाना सभी आये थे।
सच तो ये है की पूरी टाटा सुमो ही भर कर लाये थे। नाश्ते के साथ ही मैंने भी कमरे में प्रवेश किया चारों तरफ ख़ामोशी छागयी जैसे पेंटिंग देखने लगे हों। लड़की के बाप ने मूछों पर ताव देते हुए ख़ामोशी को तोडा और मेरा नाम पूछा। मैंने थोडा घबराते हुए अपना नाम बताया। नाम सुनते ही उनकी त्योंरियाँ चढ़ गयीं। बोले नाम में कुछ दम नहीं हैं, और आज के हिसाब से लेटेस्ट भी नहीं है हम तुम्हारा नाम बदल देंगे। “मुनीष” के स्थान पर “खूबचंद” रख देंगे!
मुझे सुनकर झटका सा लगा, बताइये जिस नाम को सुनकर में बड़ा हुआ। जिसने मुझे पहचान दी। जिस नाम को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ नाम समझता था आज उसी नाम को बदलने की बात हो रही थी उस नाम को बकवास बताया जा रहा था और खूबचंद, मुनीष से लेटेस्ट हो गया। गुस्सा तो बहुत आया पर क्या करता में ठहरा निर्बल पुरुष बेचारा। अब लड़की की माँ बोली बेटा जरा जूते उतारकर पैर दिखाना, और बुरा न मानो तो थोडा चल कर भी दिखा दो!
मुझे थोड़ी चिढन सी हुई। अब मैं उड़कर तो आया नहीं था। आया तो चल कर ही था तो क्या तब दिखाई नहीं दिया। और ये पैर देखकर क्या म्यूजियम में रखेंगे। मन में घुटन तो बहुत हो रही थी। पर क्या करता। जो कहते रहे वो करता रहा, जो करते रहे वो सहता रहा। इतनी गनीमत रही बाकी लोग तो तमाशाई बनकर आये थे देखते रहे और खाने पीने में व्यस्त रहे, लड़की ने विवाह के लिए हामी भर दी, साथ ही साथ दान दहेज़ की रकम भी पक्की हो गयी। अब पता नहीं क्यों मैं दहेज़ के नाम से ही डरने लगा था। उलटे-सीधे विचार आने लगे थे पर क्या करूँ। सब कुछ अजीब था परन्तु मैं समाज की धारा के विपरीत तो नहीं चल सकता था।
खैर, शादी के कार्ड भी छप कर आ गये। लेकिन उस पर मेरे नाम की जगह खूबचंद लिखा था। मुझे फिर कुछ अजीब सा लगा पर क्या करूं ये एक समझौता था जो मुझे ही करना था। मैं सोचने लगा एक वो भी दिन थे जब हम लड़के बारात लेकर जाते थे और दुल्हन ब्याह कर लाते थे और आज सब कुछ उल्टा हो रहा है अपना ही घर छूट रहा है। अब हम लड़कों को सिखाया जाएगा। अपना ही घर पराया बताया जाएगा।
शादी का दिन भी आ गया दुल्हन घोड़े पर चढ़ कर आई थी, और साथ में नाचने और खाने वालों की पूरी फ़ौज लायी थी, बरात की खूब खातिरदारी हुई। पर तब भी किसी का मुंह फूला तो किसी की नाक फूल गई। अब मेरी विदाई का समय आ गया। शायद पहली बार किसी शादी में लड़के वालों ने रोना था। विदा हुआ ससुराल आया। पत्नी ने सास से मिलवाया। मैंने सास के चरण छूए और उन्होंने आशीर्वाद दिया। खूब पैसे कमाओ और तरक्की करो। सुन्दर कन्याओं के बाप बनो और वंश का नाम ऊंचा करो। फिर मन पर वज्रपात हुआ बताइये कन्या का आशीर्वाद मिला पहले पुत्र का आशीर्वाद मिलता था जो वंश चलाता था और अब। इतनी गनीमत थी कि नौकरी हम पुरुषों ने ही करनी थी लगा शायद ज्यादा कोई अंतर नहीं है सिर्फ घर जमाई वाली ही कंडीशन है। लेकिन ये भ्रम भी जल्दी टूट गया।
एक दिन ससुर जी आये और धीरे से घुर्राकर बोले ” खूबचंद, तुम्हारी पगार पूरी नहीं पड़ती, जल्दी कुछ इंतजाम करो। न हो तो एकमुश्त राशि अपने बाप से ही मांग लो। पत्नी ने भी साथ में ही तीर चला दिया और अपने लिए एक नया सेट मांग लिया। आज अहसास हुआ दहेज़ क्या होता है क्यों अखबारों की सुर्खियां बनता है। लेकिन ये बात में अपने माँ-बाप से कह न सका और चुपचाप सब सहता रहा। अब मुझ पर रोज ख्वाहिशों का बोझ बढ़ता गया, उनके ताने सुन सुन कर में परेशान रहता। कभी कभी तो बात हद से गुजर जाती। सब मिलकर मुझे मारते। मैं अबला पुरुष सब कुछ सहता रहा। पर में अपने घर कुछ कह न सका। एक दिन विस्फोट हो ही गया। मुझे जान से मारने की तैयारी थी। जलाने का सामन आ चुका था।
मैंने ससुर जी, को समझाया। ये गलत है, दहेज़ लेना और देना पाप है, कानूनन जुर्म है। ससुर जी, बोले ये आज समझ में आया है, जब जलने का नंबर आया है1 जब बेटियां हमारी जलतीं थीं तो तुम को क्या नहीं दिखतीं थीं, दहेज़, तुमने माँगा तो पुण्य रहा, हमने माँगा तो पाप बना कुछ नया नहीं था बातों में। बातें तो वही पुरानी थीं। पहले महिलायें जलती थीं, अब हम पुरुषों की बारी थी। यही सोच चुपचाप रहा और कालचक्र का ग्रास बना कालचक्र ने चाल चली। मुझसे कुछ भी बन न पड़ा सब करता था जो कहते थे, सब सहता था जो करते थे। दुनिया की रीत निराली थी अब मेरे जलने की बारी थी। तुलसी ने सच लिखा था जो बात समझ में अब आई जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।
जैसे ही उन्होंने मेरे ऊपर तेल डाला में कमरे से भाग कर बाहर आ गया। मैं अपने घर पर ही था मेरी शादी की बात चल रही थीं कोई लड़की वाले आये थे मम्मी कह रहीं थीं “बाकी सब ठीक है परन्तु जो नाम आपकी लड़की का है वही नाम मेरी भतीजी का भी है इसलिए हम ये नाम बदल देंगे। पर मैं बोला। नहीं कोई दूसरा नाम नहीं रखा जाएगा।
मैं नींद से जाग चुका था।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
Read Comments