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क्यों बचते हैं लोग “आर. एस. एस.” से?

JANMANCH
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घटना पिछले वर्ष की है, आप लोगों ने समाचार पत्रों में भी पढ़ी होगी. हमारे शहर के विधायक अल्प संख्यक वर्ग से हैं और बाहुबली भी हैं, जब से वो विधायक बने तो वो उस समुदाय के सभी लोगों के “चचा” हो गए. उस समुदाय के कुछ असामाजिक तत्व सक्रिय हो गए और रोजमर्रा में लूटपाट की घटना छेड़छाड़ की घटना बढ़ने लगी, एक दिन कुछ लोग एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे जिसे देखकर वहीँ पर रहने वाले एक लड़के ने उन लोगों की पिटाई कर दी, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी और असामाजिक लड़कों ने अपने वर्ग के साठ-सत्तर लोगों को जमा कर लिया जिनमें उनके चचा भी साथ थे, उन लोगों ने उस लड़के के घर पर फायरिंग की जिसने उस लड़की को बचाया था. लेकिन वो लड़का भी बहादुर था तथा अपने बचाव में उसने भी फायरिंग की, हालांकि इस प्रकरण के वक्त पुलिस मौजूद थी परन्तु वो तब तक मूक दर्शक बनी रही जब तक एस. पी. साहब नहीं आ गए. अब विधायक जी ने पुलिस पर दबाव बनाया की वो उस लड़के को गिरफ्तार करे (उल्टा चोर कोतवाल को डांटे). लेकिन उस लड़के के बचाव में कोई नहीं आया न कोई सेकुलर दल, न सरकार जिनके वो विधायक थे, न ही कोई धार्मिक संगठन……… लेकिन उसका साथ दिया आर. एस. एस. ने, और न केवल साथ दिया बल्कि उन असामाजिक तत्वों को गिरफ्तार भी करवाया जिनका साथ नेताजी दे रहे थे……….! बाद में वो लड़का भी संघ का स्वयंसेवक बन गया.

ये एक वो घटना है जो मेरी आँखों देखी है, आम तौर पर संघ के क्रिया कलाप भी आप और हम पढ़ते ही रहते हैं, की किस तरह भूकंप में या बाढ़ आदि में आर. एस. एस. के स्वयंसेवक किस तरह मदद करने सबसे पहले पहुँच जाते हैं, अभी जो लखनऊ के पास जो ट्रेन दुर्घटना हुई थी, उसमें भी मदद के लिए स्थानीय लोगों के साथ आर.एस.एस. के स्वयंसेवक पुलिस से भी पहले पहुँच गए और घायलों को अस्पताल पहुंचाया. ………. उनके द्वारा संचालित स्कूल और उनके छात्रों के विषय में भी हम जानते ही हैं की उनके स्कूलों के बच्चे ज्यादा संस्कारवान होते हैं……….. आदि वासी क्षेत्रों में उनके कार्यक्रम सबको पता हैं, “सरकार” अपने स्वार्थ के चलते तीन बार संघ पर प्रतिबन्ध लगा चुकी है और अदालत हटा चुकी है क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ की भारतीय अदालतें “संघ” के द्वारा किये गए कार्यों और उनके विचारों को गलत नहीं मानती. लेकिन फिर भी सरकार द्वारा और मिडिया द्वारा पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे राष्ट्र की सभी समस्याओं के लिए आर.एस.एस. ही जिम्मेदार है, कांग्रेस महासचिव तो हर घटना के बाद कह भी देते हैं की “इसके पीछे आर.एस.एस. का हाथ है”. वो तो सोनिया गांधी की बिमारी का पता नहीं चल पाया , वर्ना वो ये भी कह देते की सोनिया जी की बिमारी के पीछे आर.एस.एस. का हाथ है.

आर.एस.एस. एक सांस्कृतिक,सामाजिक, और पारिवारिक संगठन है. जिसका मूल उद्देश्य व्यक्ति में “चरित्र-निर्माण” है और केवल यही एक कार्य ऐसा है जिस से वास्तव में भ्रष्टाचार रहित, भयमुक्त समाज की कल्पना की जा सकती है, ये किसी क़ानून से संभव नहीं है किसी लोकपाल के बस की बात नहीं है. और ऐसे विषम कार्य को करने का बेडा आर.एस.एस. ने उठाया है संघ यदि चाहता है की अपना राष्ट्र विश्वगुरु बने तो क्या गलत है, यदि वो चाहता है की अपने राष्ट्र की धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, विरासतों को पूरी श्रद्धा के साथ आत्मसात किया जाय तो क्या गलत है. यदि संघ के विचार में राष्ट्र आराधना सर्वोपरि है और बाकी सब गौड़ तो क्या गलत है………!

लेकिन इस सबके बावजूद, लोग संघ से कन्नी काटते हैं, और जिसका सभी भ्रष्टाचारी उलटे-सीधे तरह के आरोप लगा कर बदनाम करने की कोशिश करते हैं की कहीं लोग जागरूक हो गए तो गद्दी कैसे कायम रहेगी, जेब कैसे भरेगी. अभी हाल ही में हुए अन्ना आन्दोलन के पीछे “संघ” का हाथ होने का प्रचार भी हुआ, हालांकि अन्ना और अन्ना के साथियों ने न तो इस बात का खंडन किया न ही समर्थन, परन्तु “अन्ना” के आन्दोलन में अन्ना और उनकी टीम संघ का नाम लेने से बचती रही, और तो और “भारत माता” के चित्र पर “महात्मा गांधी” का चित्र भारी हो गया क्योंकि भारत माता के चित्र का प्रयोग तो आर.एस.एस. के लोग करते हैं. उनका बस चलता तो “वन्दे मातरम् और भारत माता की जय” भी न बोलते परन्तु जो वाक्य भारतीय जनमानस की आत्मा की आवाज बन चुके हैं भला उनको कैसे न बोलते, वर्ना जनता कैसे जुड़ती. आर.एस.एस. के भगवा रंग से इतनी दूरी बनायी गयी की स्वामी रामदेव को मंच पर आसन नहीं मिला लेकिन……….शाहबुद्दीन, आमिर खान, ओमपुरी, और कुछ राजनितिक नेताओं को आराम से मंच पर आसन मिल गया……… !

वास्तव में यदि निष्पक्षता सोचा जाए तो संघ किसी भी द्रष्टिकोण से कोई गलत कार्य नहीं करता है न सांप्रदायिक, न सांस्कृतिक परन्तु, न सामाजिक, न आर्थिक…….. कम से कम मैंने तो अभी तक नहीं देखा…… लेकिन राजनैतिक लोग अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए संघ को शुरू से ही निशाना बनाते आये हैं और भ्रामक प्रचार करते रहे हैं, जिस से राष्ट्र के लोग संगठित न हो सकें, जागरूक न हो सकें, और अपने अधिकारों के प्रति सजग न हो सकें……. सिर्फ व्यस्त रहें तो रोटी-कपडा और मकान की चिंता में…….! राष्ट्र का कोई भान न रहे, अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के कारण भ्रष्टाचार में लिप्त रहें, और राजनेता अपनी रोटियाँ सेकते रहें.

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