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इतिहास के लिए जरूरी हैं आतंकवादी

JANMANCH
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लीजिये साहब फिर से बम धमाके, ऐसा लगता है की आतंकवादी जब ट्रेनिंग लेकर तैयार हो जाते हैं तो

प्रक्टिस करने के लिए भारत आ जाते हैं चलो यहीं पर अभ्यास कर लें, और देशों में तो दिक्कत आएगी, ये सर्वसुलभ देश है जब चाहो अभ्यास किया और जब मन आया यहाँ आये घूमे फिरे लूट पाट की चले गए.  आतंकवादियों को पता है की इस देश की सरकार ” अतिथि देवो भव” की तर्ज पर आतंकवादियों की बड़ी इज्ज़त करती है और बड़े संभालकर रखती है. जितने चाहो नागरिकों को बम से उडाओ, एक सौ इकतीस करोड़ हैं  कोई कमी नहीं आएगी ये आतंकवादी ही थक गए तो बात अलग है. सरकार भी हर बार कहती है की आतंकवादियों को मुहतोड़ जवाब दिया जाएगा, पब्लिक  भी सोचती है की भाई ऐसा कौन सा जवाब जिससे मुहं टूट  जाताहै…… इसका सीधा सा अर्थ है उनको तब जवाब देंगे जब हमारा मुहं टूट जाएगा, तो साहब जब तक सबके मुहं न टूट जाएँ तब तक तो आतंकवादियों को सरकार कुछ नहीं कहेगी.

आतंकवादी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता ये कहना है श्रीमान राहुल जी का, सही बात अगर रोक दिया तो कैसे पता चलेगा की हमारी मेहमाननवाजी की छाप विदेशों तक कैसे पहुंचेगी. कैसे पता चलेगा की हम दुश्मनों से भी कितना ज्यादा प्यार करते हैं ९/११ के बाद से अमेरिका ने अपने यहाँ एक भी आतंकी घटना नहीं होने दी इससे पता चलता है वो लोग कितने खुश्क मिजाज़ लोग हैं और मनुष्यता के कितने खिलाफ…………

विद्वानों का कहना है की अपनी इतिहास से सबक सीखना चाहिए और घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होने देनी चाहिए लेकिन ये भी तो सोचिये की यदि गलती पुनरावृत्ति नहीं की तो इतिहास में क्या लिखेंगे इसीलिए हमने इतिहास से क्या सीखा ये बताने की कोई जरूरत नहीं बल्कि हमें इतिहास में ये लिखवाना चाहिए की यहाँ की सरकार हमेशा से मजबूत प्रकृति की रही और कोई भी एतिहासिक घटना सरकार के विचारों को डिगा नहीं सकी सरकारें अपने कार्य में मग्न और इतिहास अपने बार बार दोहराने पर आमादा. सिर्फ इतिहास के डर से हम आतंकवादियों को मारें…..हिंसा करें नहीं कदापि नहीं इतिहास गवाह है विदेशी आक्रमणकारी  बार बार आये पर हम बिलकुल नहीं सुधरे……. जब वो नहीं सुधरे तो हम क्यों सुधर जाते…….. ! कमजोर प्रकृति के लोग में बदलाव होता है और हमारी सरकार तो कभी भी कमजोर नहीं रही…… आज से ही नहीं प्राचीन काल से ही …….. सोमनाथ का मंदिर बार बार लुटा और हम लुटवाते रहे, गौरी बार बार आया हारा और हम छोड़ते रहे जब तक की वो जीत न गया,  भाई जो गलती हम बार बार कर सकते हैं कोई और तो कर ही नहीं सकता……..! जो भी विदेशी भारत आया उसने लूटा और हम लूटे पर इस डर से हम सुधरे नहीं. हमारी धन सम्पन्नता और भलमनसाहत को देख कर विदेशियों ने निरंतर आक्रमण किये……..! हालांकि उन विदेशी आक्रमणकारियों को भारत आने में बहुत तकलीफों का सामना भी करना पड़ता था तो हमने उनको यहीं पर बस जाने की नेक सलाह के साथ रोक लिया…. अब आक्रमण कम हो गए हैं पर बाहर लूट का माल तो पहुंचना जरूरी है हमारी  भारतीय सरकार बड़ी परेशान की कोई हमें लूटने नहीं आ पा रहा hai, वो तो भला हो स्वीटजरलैंड का जो स्विस बैंक बना लिया और हमारे नेता लूट का माल स्वयं ही बाहर ले जाने लगे वर्ना आज तक  विदेशी भुखमरी के आलम में जी रहे होते, और हम से उनकी ये दुर्दशा देखि न जाती…….!  लेकिन अब सब ठीक हैं अब हम स्वयं ही अपने आप को लूट रहे हैं.

कुछ मूर्ख लोग सरकार पर निष्क्रियता का आरोप मढ़ते हैं…. परन्तु उन्हें क्या पता की यदि आतंकवादी गतिविधि रुक गयी इतिहास में क्या लिखेंगे….. और इसके फायदे भी हैं एक तो ये काम भी थोडा मजेदार है दूसरा कितने सारे लोगों को काम मिल जाता है डोक्टर… बिजी, दवाइयों की बिक्रीहोती है, उद्योग फलफूल रहा है, मिडिया बिजी……. पत्रकार लोग जब किसी घायल से पूछते हैं की ” आपकी जब बम से टांग उड़ गयी तो आपको कैसा महसूस हुआ आपको कहाँ दर्द हुआ…….. ”  तो दर्शक मुस्कराए बिना नहीं रह पाते …….. और आज के इस दौर में जब इंसानियत सिसक सिसक कर दम तोड़ रही है तो छणिक मुस्कराहट की भी बहुत कीमत है. फिर वो चाहे किसी की टांग तोड़कर आये या जनाजे में शामिल होकर……. लेकिन किसी को कोई अधिकार नहीं की वो हमारी एतिहासिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाए…………… इसलिए न हम सुधरे थे न सुधरेंगे…….. चाहे कितने ही बम फटें लेकिन लाशों को गिनते समय हम ये जरूर गिनेंगे की कितने हिन्दू थे और कितने मुस्लिम….. जब दंगों से पीड़ित लोगों की गड़ना होगी तो ये हिसाब भी रखना जरूरी होगा कितने पिछड़े थे कितने दलित कितने सामान्य………. ऐसा नहीं करेंगे तो इतिहास में क्या लिखेंगे की भारत केवल भारतवासियों का देश था. ………….और वहां कोई नहीं था इससे हमारी सारे विश्व में एतिहासिक बेइज्जती नहीं हो जायेगी.

इसलिए यदि आतंकवाद बढ़ता है तो बढ़ने दो, प्रधानमन्त्री मौन हैं तो रहने दो, जनता स्वार्थ में लिप्त है तो रहने दो, कालाधन विदेशों में जमा हो रहा है तो होने दो, दंगे होते हैं तो होने दो, देश लुटता है तो लुटने दो क्योंकि ये सब इतिहास में दर्ज होगा और जब कोई घटना ही घटित नहीं होगी तो इतिहास कैसे लिखा जाएगा….!

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