सावधान ! ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार है
JANMANCH
75 Posts
1286 Comments
कैसे रहते होंगे लोग तानाशाही में, इस बात को समझने के लिए ये जरूरी नहीं की आपको हिटलर का इतिहास पढना पढ़े, या सद्दाम हुसैन को जानना पड़े. भारत सरकार भी किसी तानाशाह से कम नहीं है. कहने के लिए हो सकता है की भारत एक लोकतांत्रिक देश है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपनी लोकतांत्रिक छवि को धूमिल किया है ये सब कुछ हुआ केंद्र सरकार के स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण. सारी मर्यादाएं ताक पर रख दी गयीं हैं, लगता ही नहीं की यहाँ जनता के द्वारा चुनी हुई जनता की ही सरकार है. राजनेताओं ने राजनीति की परिभाषा ही बदल कर रख दी है, देश के नेता वास्तव में कोई नेता नहीं होकर केवल राजनैतिक व्यक्ति हैं और उन के लिए ये राष्ट्र, इसके नागरिक, इसकी संस्कृति सब गौड़ हैं. केवल स्वार्थ सर्वोपरि है. राष्ट्रवाद पर व्यक्तिपूजा भारी है. विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में, लोकतंत्र कैसे स्थापित रह सकता है, लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना कैसे हो सकती है जबकि सरकार में बैठी सत्तासीन राजनैतिक पार्टी में ही लोकतंत्र नहीं है.
वास्तव में, सत्तासीन पार्टी के अन्दर ही प्रजातंत्र का आभाव है और सब के सब एक खास परिवार के आगे नतमस्तक हैं चाहे वो सही हो या गलत, चाहे उन्हें देश की जनता चाहती हो या नहीं, पार्टी में उस परिवार के विरुद्ध किसी को बोलने का अधिकार नहीं है, पार्टी तो क्या देश में भी यदि कोई इस परिवार के विरुद्ध कोई बोलता है तो इस पार्टी के कार्यकर्ता देश में तोड़फोड़ पर उतारू हो जाते हैं, गुंडागर्दी करते हैं…………
आजादी के बाद से आज तक ८०% से ज्यादा समय तक यही पार्टी सत्ता में बनी रही है. तो देश में फैली अराजकता के लिए कोई और जिम्मेदार कैसे हो सकता है. आजादी के साथ ही इस पार्टी ने देश को एक एक कर के समस्याएं उपहार स्वरुप देनी शुरू की, कश्मीर, आतंकवाद, पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह, नागा, बोडो, उल्फा, नक्सलवाद, माओवाद, साम्प्रदायिकता, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि. और ये सब समस्याएं एक साथ नहीं आयीं बल्कि धीरे धीरे आयीं हैं इन समस्याओं ने एक साथ इतना विकराल रूप धारण नहीं किया बल्कि धीरे धीरे ये बढती चली गयीं. वास्तव में समस्याओं के बढ़ने का कारण उनका निराकरण न करना रहा है पहले पहल तो समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया और बाद में उसका निराकरण करने की इच्छाशक्ति नहीं थी, साथ ही साथ दूरदर्शिता की कमी और पार्टी नेताओं का अपना स्वार्थ भी इन राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण के आड़े आता रहा.
निश्चित ही आज राष्ट्र की जो स्थीति है उस के लिए केवल एकमात्र आज की सत्तासीन राजनैतिक पार्टी ही है. क्योंकि इसने जानबूझकर अपने वोट बैंक की खातिर इन समस्याओं को पैदा किया और देश को अलग अलग समुदायों में बांटे रखा, घोर साम्प्रदायिकता का बीज बोया. कोई भी सरकार देश के बहुसंख्यक वर्ग की उल्हेना करके राष्ट्र में शांति स्थापित नहीं कर सकती. और इस पार्टी की सरकार ने हमेशा ही जनभावनाओं को अंगूठा दिखाया, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया, आरक्षित और गैर आरक्षित में बाँट दिया जिस से लोग केवल अपने स्वार्थ को ही सर्वोपरि रखें और राष्ट्रीय मुद्दों से उदासीन बने रहे …….! अब क्योंकि समस्याएं विकराल हो गयीं हैं और जनता जागरूक, बस यहीं से एक लोकतांत्रिक सरकार अपने स्वार्थों की पूर्ती के लिए और राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर निरंकुश हो गयी है. प्रजातंत्र ख़त्म, तानाशाही शुरू.
अब स्थीति ये है की कोई यदि राष्ट्रहित की बात भी करता है तो वो सरकार की आँख की किरकिरी बन जा रहा है, उसको नए नए षड्यंत्रों में फंसाया जा रहा है, जनता पर डंडा चलाया जा रहा है, किसी को भी राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलने का अधिकार नहीं है, जो बोलेगा वो पिटेगा. यही है विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और लोकतांत्रिक सरकार.
सरकार बयान देती है की आन्दोलन को इसलिए दबाया गया की उसके पीछे साम्प्रदायिक शक्तियों का हाथ था. तो क्या साम्प्रदायिक शक्तियों का बहाना करके आप राष्ट्रीय हित के मुद्दों को तिलांजलि दे देंगे और सोते हुए आन्दोलनकारियों पर डंडा चलवाएंगे. और रही बात साम्प्रदायिकता की तो ये समस्या भी इसी पार्टी की देन है आज़ादी के पहले ही से. अब प्रश्न ये है की जो पार्टी देश की लगभग सभी समस्याओं की जननी है उसे सत्ता में बने रहने का कितना मौलिक अधिकार है.
क्यों नहीं सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कारगर कदम उठाती.
क्यों आजतक हुए घोटालों के विषय में सरकार ने कुछ नहीं किया, सर्वप्रथम तो उन्होंने घोटाले माने ही नहीं परन्तु जब देश की सर्वोच्च अदालत ने फटकार लगाई तब जाके उनपर ध्यान देने का नाटक किया जा रहा है. देश में १९५९ में सबसे पहले घोटाला हुआ और उसके बाद से आज तक लगातार घोटाले हो रहे हैं स्वयं गांधी परिवार के सदस्य भी घोटालों में फंसे रहे जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी का नाम कु आयल कंपनी (हांगकांग) के साथ १३ करोड़ के तेल गोतले में आया तो राजीव गांधी का ६४ करोड़ के बोफोर्स तोप घोटाले में, परन्तु आज तक कुछ नहीं हुआ. (देश में हुए अन्यघोटालों की जानकारी के लिए एक लिंक दे रहा हूँ. )
क्यों सरकार देशव्यापी समस्याओं और अपनी असफलताओं का ठीकरा अन्य राजनैतिक और गैर राजनैतिक पार्टियों पर फोडती है?
क्यों सरकार जानबूझकर राष्ट्रीय मुद्दों, सांप्रदायिक मुद्दों में उलझाना चाहती है?
सावधान ! ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार है. ये लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखती क्योंकि जिस राजनैतिक पार्टी की ये सरकार है वास्तव में उसमें ही लोकतंत्र नहीं है. इस सरकार के समक्ष सिर उठाने वालों का सिर कुचल दिया जाता है, यहाँ पर सच बोलने वालों की जुबान काट ली जाती है, राष्ट्रप्रेमियों को राष्ट्रद्रोह की सजा दी जाती, देशद्रोहियों को पनाह दी जाती है, जनता के कर की गाढ़ी कमाई सरकार के ऐशो आराम पर खर्च की जाती है, घोटालों से मंत्री अपनी जेबें भरते हैं, देश का पैसा विदेशों में भेजते हैं…….. सावधान ! ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार है जो लोक हित में ही विश्वास नहीं करती, जो लगातार इस तंत्र के लोक का गला घोट रही है……….
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments