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हे भगवान्,……………पिता जी और ऐसे ……… !

JANMANCH
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आप लोग हो  सकता है मेरे इस कथन पर आश्चर्य व्यक्त करें या मुझे बड़ा ही नालायक और कपूत समझें परन्तु मैं ये बात बिलकुल मन से कह रहा हूँ की भगवान् मेरे जैसे पिता किसी को न दे. अरे ऐसे पिता का क्या फायदा जिससे जीवन के हर पग पर कष्ट ही मिला हो और कभी भी पिता होने की अनुभूति न हुई हो. मैं बचपन से आजतक अपने पिता को झेलता आया हूँ और वास्तव मैं देखा जाए तो मैं ही नहीं उन से जुड़ा हर व्यक्ति उन्हें झेल ही रहा है. कोई एक विषय या एक घटना हो  तो आदमी भूल भी जाए परन्तु जब रोज ही नयी  नयी बातें होती हों तो आदमी कैसे भूल सकता है. मुझे नहीं पता मेरे दादाजी ने उन्हें कैसे झेला था क्योंकि मेरे होश सँभालने से पहले ही स्वर्गारोहण के लिए निकल गए थे.

पिताजी वैसे तो इंजिनियर हैं और विधुत विभाग से रिटायर हैं परन्तु उनके अन्दर एक भी गुण ऐसा नहीं की कोई उन्हें विधुत विभाग का इंजिनियर मान ले, साहब बचपन में  मैंने  बहुत बड़े बड़े इंजिनियर से इंजिनियर देखे पर मजाल क्या जो एक भी अपने हाथों से पेचकस पकड़ता हो  पर एक ये हमारे सर्वगुण संपन्न पिताजी हर समय पेचकस हाथ में, कभी कुछ खोल डालते तो कभी कुछ. अरे ये काम कोई इंजिनियरओं के होते हैं वो तो हाथ पर हाथ रख कर साहब बनकर रहते हैं और ये हमेशा कपडे काले करते रहे. एक भी सहाबी गुण नहीं था. ये भी पता करने की बात है की वो इंजिनियर बन कैसे गए.  वैसे विभाग में भी पिताजी से सभी दुखी थे. एक घटना मुझे याद आती है एक बिजलीघर का चार्ज पिताजी के पास था तो समझना चाहिए की एक आदमी की ड्यूटी का कोई निश्चित समय भी होता है या जब जी आया पहुँच गए मुहं उठाकर ………अगर आप रात को एक बजे पहुँच जाओगे तो अधीनस्थ कर्मचारियों को कष्ट तो होगा ही पर समझाए कौन तो पहुँच गए …………ड्यूटी पर गनमेन सो रहा था भाई वो भी आदमी है लग गयी झपकी आपको तो नींद न आने की बिमारी है पर हर कोई बीमार थोड़े ही है, तो बेचारे सोते हुए गनमैन की गन ही चुप चाप उठा लाये. ……..जब वो सुबह को सोकर उठा तो पता चला रात को साहब आये थे वही  ले गए हैं ………………..क्या करता बेचारा पिताजी के पास जाने की तो हिम्मत थी नहीं तो गया माताजी के पास गुहार लगाई…….और तब जाकर अपनी बन्दूक पायी ……….बताइये ये कोई तरीका है एक बार “एसएसओ” महोदय सो रहे थे तो उनका एंट्री रजिस्टर ही ले आये अब वो बेचारा एंट्री कहाँ करेगा ……..पर कौन समझाए………..कोई एक घटना हो  तो बताऊँ.

इनको ऐसी हरकतों के कारण ज्यादातर पब्लिक डीलींग से दूर ही रखा गया और बिजली घरों पर ही पोस्टिंग रही………….अब देखिये छोटी सी बात, आमतौर पर  हाइडिल कालोनी में बहुत सी खाली  जमीन पड़ी रहती है जिसका लोगबाग सदुपयोग कर लेते हैं कोई छोटी मोटी   साग-सब्जी उगा लेता हैं तो कोई भैंस पालकर उसमें भैंस का चारा बो देता हैं अब इसमें हमारे पिताजी का क्या नुक्सान और जमीन भी इनकी नहीं पर वही  हिटलरी अंदाज…….सब की क्यारी खेत खलिहान अधिग्रहीत कर लिए और लगवादी फुलवाड़ी और बनवा दिए बच्चों के लिए खेल के मैंदान, की बच्चे खेलेंगे, वो तो वैसे ही नहीं पड़ते थे और अब तो खेल का मैदान बन गया तो अब कौन पढ़ेगा. अब एक गुण तो मैं बताना भूल ही गया  वो पिताजी का मिजाज जो की ज्यादातर सबसे ऊँचे वाले आसमान पर ही रहता था क्योंकि मैंने जिनके वारे में सुना की उनका मिजाज सातवें आसमान पर है तो वो पिताजी के सामने पानी मांगते नजर आते थे……..कालोनी के बच्चे तक उनको देख लेते तो अपने अपने घरों में छिप  जाते  थे…….और वो बच्चे मैदान में कैसे खेल पाते होंगे अब आप ही सोचिये……….इस विषय पर एक घटना और है एक बार हम सब कालोनी के बच्चों ने सोचा की चलो नव वर्ष पर कुछ कार्यक्रम किये जाएँ तो हमने तैयारी की. और कार्यक्रम शुरू किया मंच के सामने प्रथम पंक्ति में हमारे पूजनीय पिताजी और उनके समकक्ष अधिकारियों को बैठाया गया और बाकी सबको उनके पीछे कुर्सियों पर.

अब जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ तो हमारे एनाउंसर साहब अपने डायलाग भूल गए और जल्दी से प्रोग्राम के विषय में बताकर निकल लिए अब जिस बच्चे का प्रोग्राम था मंच पर आते ही वो भी अपने डायलाग भूल गया और उसका कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा, अब दुसरे का नंबर था और मंच पर आते ही वो भी डायलाग भूल गया ………एक अधिकारी को शक हुआ की कुछ गड़बड़ है बच्चों से मिलना चाहिए तो वो उठकर ड्रेसिंग रूम में आये और घबराहट का कारण पूछा तो सब ने कहा वो गुप्ता अंकल सबसे आगे बैठे हैं उनको देखते ही हम अपने डायलाग भूल जाते  हैं……. अब सब अधिकारियों की कुर्सी सबसे पीछे डलवाई गयी तो कार्यक्रम तो हो  गया परन्तु उनके आगे बैठे सब अधीनस्थ कर्मचारी खुलकर हँस भी न सके………….अब सोचिये की में अपना जीवन कैसे काट रहा हूँ.
अजी एक बार गलती से उनको एक शहर का चार्ज मिल गया, परिस्थितियां बदलीं पर पिताजी नहीं बदले. समय से पूर्व ही ऑफिस पहुँच जाते  और करते परेशान लाइनमेन को की जाओ और कम्प्लेंट  पूरी करो और बैठे रहते रात को ११ बजे तक अब ये तो सोते ही नहीं हैं पर भाई औरों को तो नींद आती है पर कौन समझाए…….! हद तो तब हो  गयी जब बिल न भरने के कारण शहर के एम्एलए साहब का ही कनेक्शन काट दिया, भाई पब्लिक के नौकर हैं पब्लिक के काम से देर सबेर हो  जाती है परन्तु नहीं साहब काट दिया कनेक्शन, एम्एलए साहब ने स्थानांतरण करा दिया जंगलों में परन्तु जैसे हमारे पिताजी थे ऐसे ही उनके भी अधिकारी थे तो साहब उन्होंने पिताजी को जाने नहीं दिया ………..अब एम्एलए साहब ने सारा ध्यान पब्लिक के कामों से हटाकर पिताजी के स्थानांतरण पर लगा दिया भाई आखिर वो भी कोई काम अधूरे मन से नहीं करना चाहता था परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली और अगले चुनाव में भी असफल ही रहे लोगों ने कहा की बताओ इन साहब से एक स्थानांतरण तक तो हुआ नहीं तो ये क्या करेंगे तो वोट ही नहीं दी………..खा गए न एक बेचारे एम्एलए की कुर्सी…………….

इनकी उलटी  सीधी हरकतें यहीं पर ख़त्म नहीं होती एक बार हिजड़ों का कनेक्शन काट दिया ……….अगले दिन सुबह सुबह हमारे नाच-गाना शुरू……..मोहल्ले वाले सोच में पड़  गए की भाई इनके यहाँ कौन सी ख़ुशी की बात है ……..और माताजी सहित हम सब भी हैरान की हमारे यहाँ कोई ख़ुशी की बात हुई है और हमें ही पता नहीं………..पिताजी निकल कर गए उन लोगों को समझाया की इतना पैसा जमा करो तुरंत कनेक्शन जुड़ जाएगा अब वो हिजड़े थे कोई नेता तो थे नहीं जो समझ में नहीं आता सो चले गए बिल जमा करने.

ये तो मैंने कुछ विभागीय हरकतें ही बतायीं हैं यदि सारी बातें लिखूं  तो एक और ग्रन्थ की रचना कर दूँ. घर में तो समझिये जैसे ही पिताजी घुसते थे तो सबको सांप सूंघ जाता था कोई उनके सामने नहीं आता था कभी कभी हमारे ऊपर हमारी माताजी जुल्म ढाना   शुरू कर देती कहती की कभी कभी इनको पढ़ा भी दिया करो ……………तो बस हो  गयी पढाई ……..पिताजी को बैकलॉग   देखने  की आदत थी पढ़ाने से पहले कहते बताओ……… और हम सब कुछ भूल जाते …………

ऐसा नहीं है की जानवरों से प्यार केवल मेनका गाँधी को ही रहा है, हमारे पिताश्री को भी कम प्यार नहीं था …..और इतना ज्यादा प्यार था की मुझे भी कभी मेरे नाम से नहीं पुकारा हमेशा आवाज लगाते …” अबे ओ गधे………..” या ….”ओये उल्लू…….” कभी कभी तो ये जानवर  प्यार इतना बढ़   जाता  की वो हमें मुर्गा  बनाने  की कोशिश तक करते पर पर यहाँ वो असफल हो गए  हम भी पक्के निकले ताउम्र उन्होंने हमें मुर्गा बनाने की कोशिश की और हम बन गए वकील   ……… लो बना लो मुर्गा…….. अब तो मैं ही सबको मामू बनाऊंगा……

सबसे बड़ी बात तो ये है की पिताजी समाज के और रीतिरिवाजों के जन्म जात दुश्मन हैं, सामाजिक तो हैं ही नहीं…..अब मेरी शादी की ही लीजिये…… हमारे ससुरजी कितने ही बार पूछने आये अजी कुछ बताइये शादी मैं कुछ इच्छा हो तो बताइए…… अब थे तो उलटे ही,  उल्टा ही  कहने लगे आप ही बता दो अगर कोई इच्छा हो और पैसे वैसे की तंगी हो तो मैं पूरी कर दूंगा. …………आप  कुछ भी खर्च  करो न करो मुझे कोई लेना-देना नहीं है, तुम्हे जरूरत  हो तो बताओ…………..ससुरजी भी असमंजस में पड़ गए की ये कैसे लड़के वाले हैं.    बताइए है न उलटी बात अरे सामाजिक बनिए……शादी का बजट फिक्स कीजिये…….फिर बताइए की क्या क्या और कितने का लेना है…….पर नहीं…………असामाजिक जो ठहरे………………….और मेरी ही नहीं छोटे भाई की शादी मैं भी नहीं सुधरे ……..उन से भी  बजट तय नहीं किया……कोई ऐसे शादी होती हैं……..माताजी ने बताया की ऐसी हरकतें तो हमारे पूजनीय पिताजी बहुत पहले से करते चले आ रहे हैं……..हमारे चाचाश्री की शादी भी ऐसे ही करा दी और हमारे दादाजी कुछ कह नहीं पाए………………..बताइए वो बेटा ही क्या जिससे बाप तक डरे…… हद तो तब हो गयी जब चाचाजी की शादी में उल्टा बारातियों को ही लड़की वालों की मदद करने को काम पर लगा दिया(असामाजिक होने का एक और सबूत )…………अब बाराती ऐश करते हैं की काम करते हैं……….पर पिताजी की उलटी सीधी हरकतों को सबको झेलना पड़ता और सबसे ज्यादा माताजी को………चाचाजी लोग सब डरते थे तो वो माताजी से कहते…………अधीनस्थ कर्मचारी डरते थे तो माताजी से कहते ……………….हम भी डरते तो माताजी ही याद आतीं…………और सबकी अरदास माताजी ही सुनती……………अब बताइए पिताजी न हो गए हिटलर हो गए..
अजी एक कर्मचारी तो यहाँ तक कह रहा था की ” इन्हें विधुत विभाग में किसने भेज दिया, थानेदार क्यों नहीं बनाया.”……….एक जो सामाजिक दस्तूर से अलग थलग चलने का रोग था उससे कर्मचारी भी परेशान थे……. भाई चलो काम तो कर रहे हैं ……….. ड्यूटी सख्त करवाते हो……………. दांत भी पिलातेहो ……….कोई बात नहीं…….पर कम से कम काम करने का मेहनताना तो पब्लिक से ले लेने दो…………पर नहीं जी…………..मुफ्तखोरी की पिताजी को आदत थी तो मुफ्त काम खुद भी करते और सबसे करवाते…………..!

न उनमें अच्छे अफसर के गुण थे न ही मेहनती आदमी के बस मुफ्तखोरी…….और तानाशाही…………..अब तक तो मैं उनको झेल ही रहा हूँ क्या करूं ज़माना बदल गया है पिता तो हिटलर हो सकता है बेटा औरंगजेब नहीं हो सकता……… वर्ना लोग बाग़ कहेंगे पिता के रिटायर होते ही अलग हो गया…….पर उन्हें कौन समझाए जो पिताजी का कोप मैं, माताजी  और सब अधीनस्थ कर्मचारी मिलजुलकर झेल रहे थे अब केवल मुझे और माताजी को झेलना पड़ता है…………….. अब मैं लिखना बंद करता हूँ कहीं पिताजी आ गए तो ……………………..!

हे भगवान् तुम  ऐसे पिता किसी को भी मत देना………. जो समाज की धारा के विपरीत चलते हों

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