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प्रलय से पूर्व भगवान् की मीटिंग

JANMANCH
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भगवान् ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई थी अतः सभी देवी देवता दरबार में उपस्थित थे, केवल देवी देवता ही नहीं  बल्कि सभी दूत-यमदूत, ऋषि-मुनि, और स्वर्ग सहित सभी लोकों के अन्यान्य कर्मचारी उपस्थित थे, चारों ओर उहापोह की स्थिति थी, कोई भी देवता-देवी-ऋषि नहीं समझ पा रहा था की प्रभु ने आज अकारण कैसे सबको याद किया..! कर्मचारी लोग भी हैरान परेशान थे उन्हें तो बुलाया ही वरन आज कुछ ऐसे देवी देवताओं को भी मीटिंग में बुलाया गया था जिन्हें भूले से भी कभी नहीं बुलाया जाता तो फिर आज क्यों ………? जरूर कोई विशेष बात है, …… सब लोगो के साथ ही  मीटिंग में स्वर्ग-नरक के व्यवस्थापकों को भी बुलाया गया था.


स्वर्ग के घंटाघर की घडी बहुत बड़ी थी  सभी देवी देवताओं की निगाहें उस पर जमीं थीं सभी १० बजने का इंतज़ार कर रहे थे,  जैसे ही १० बजे का घंटा बजा तभी तीनों लोकों के स्वामी, शंख-चक्र-पदम्-गदाधारी, लक्ष्मीपति, भगवान् श्रीहरी का आगमन सभा में हुआ. उनके तेज़ से दसों  दिशाएं चमक उठीं, सभी उपस्थित देवी – देवताओं की आँखें श्रीहरी के तेज़ के कारण चौंधिया गयी, जिस से वो आँखें ठीक ढंग से नहीं खोल पा रहे थे.


भगवान् ने आसन ग्रहण किया तो देव ऋषि नारद ने प्रभु से प्रार्थना की …….” हे प्रभु कृपया अपनी इस “हेलोजन लाइट” के प्रकाश को कम कीजिये यहाँ उपस्थित देवी देवता आपके दर्शन ठीक ढंग से  नहीं कर पा रहे हैं जिस कारण उन्हें असुविधा हो रही है. प्रभु ने देव ऋषि के कहने पर अपनी हेलोजन लाइट बंद कर दी जिस से उनका निकलने वाला तेज कम हो गया और सभी उपस्थित लोगों को भगवान् के दर्शन ठीक ढंग से हुए.


तब भगवान् की स्तुति के उपरान्त इन्द्रदेव ने इस इमरजेंसी मीटिंग के विषय में जानना चाहा…….. और सभी देवताओं की जिज्ञासा को शांत करने के लिए कहा,   तब भगवान् अपनी  कुर्सी से खड़े हो गए और सबको संबोधित करते हुए बोले……


” उपस्थित देवगणों प्रथ्वी पर महाप्रलय का दिन आ गया है”


इतना कहते ही सभा में संसद भवन की तरह कोलाहल सुनाई देने लगा,


भगवन बोले शांत – सभी लोग शांत हो जाएँ……………लेकिन ऐसी घोषणा के बाद कोई शांत कैसे रह सकता है प्रभु की अपील का कोई असर नहीं हुआ लेकिन जब प्रभु ने दोबारा शान्ति की अपील की तो धीरे धीरे सब शांत हो गए……..


तब प्रभु ने कहा,……..आज हम सब यहाँ महाप्रलय के इस महायोजन की व्यवस्था के विषय में ही बैठक करेंगे.  इसीलिए आज मैंने “भूकंप देव,” “सुनामी देवी” और “ज्वालामुखी देवी” को भी बुलाया है जो लाखों वर्षों से सोये हुए थे.( तीनों ने खड़े होकर सबको प्रणाम किया और अपना अपना परिचय दिया )  इन तीनों को प्रथ्वी पर महाप्रलय के इस महान कार्य को अंजाम देना है (फिर भगवान् ने गरुड़ को तीन लिस्ट दीं जिन पर सभी देशों के नाम थे और तीनो प्रलयंकारी देवताओं को देने को कहा) इस लिस्ट में प्रथ्वी के सभी देशों के नाम लिखे हैं जिसकी लिस्ट में जिस देश का नाम है उसे उस देश में ही प्रलय करनी है ध्यान रहे किसी को किसी दुसरे देवता के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है. आप तीनों लोगों को इस महाप्रलय के आयोजन में अपनी मदद के लिए  कितने दूत-यमदूतों की आवश्यकता है उसकी एक लिस्ट बनाकर “यमदेव” को दें उनकी व्यवस्था की जिम्मेदारी उन पर रहेगी.


फिर प्रभु ने आगे कहा “प्रथ्वी से अचानक अरबों की संख्या में मनुष्य स्वर्ग आयेंगे इसलिए व्यवस्था ठीक ढंग से होनी चाहिए ऐसा न हो ओवर पोपुलेशन के कारण व्यवस्था चरमरा जाए. जैसे अभी कुछ दिनों पूर्व बरेली में भारत-तिब्बत पुलिस की भरती    के समय हुआ……. मैं नहीं चाहता किसी भी आत्मा को कोई कष्ट हो”.


सभी आत्माओं के रहने की व्यवस्था ठीक ढंग से होनी चाहिए इसकी जिम्मेदारी “कुबेर” की रहेगी. इनके साथ कुछ अन्य देवी देवता जिनको ये चाहें, जा सकते हैं. वैसे मेरी इश्वरियत (व्यक्तिगत) सलाह ये है की अभी कुछ माह पूर्व प्रथ्वी पर भारत देश में कोई “कॉमनवेल्थ” नामक खेल हुए थे उनका आयोजन एक मनुष्य ने बड़ी कुशलता से किया था आप लोग उस मनुष्य को अपनी मदद के लिए पहले ही बुला लें वो अच्छा व्यवस्थापक है पर हाँ उसे कोई रुपये-पैसे का काम मत देना वर्ना तो कुबेर तुम्हारा खजाना खाली हो जाएगा उससे केवल सलाह ही ली जाए.


दूर संचार की व्यवस्था “पवन देव” पर रहेगी वो प्रथ्वी से तीनों प्रलयंकारी देवताओं के संपर्क में रहेंगे, उन्हें अपनी क्षमताओं का विस्तार करना है ये टुजी -थ्रीजी से काम नहीं चलेगा टैन्जी-ट्वेंटीजी चाहिए, इसलिए कुछ नए ओपरेटर भी चाहिए ये सब पवन देव को संभालना है वो भी अपनी मदद के लिए अन्यान्य देवताओं को ले सकते हैं वैसे मेरी इश्वरियत (व्यक्तिगत) सलाह ये है की इसमें एक बड़ा ही निपुण मनुष्य है वो भी भारत देश में ही रहता है उसे भी आप पहले ही बुला लें तो अच्छा रहेगा आपकी मदद हो जायेगी पर हाँ जो ऑपरेटरों से लेन-देन की बात हो वो आप स्वयं ही करें -कभी कभी वो निपुण मनुष्य ऑपरेटरों से सांठ-गाँठ कर लेता है और आने वाले धन को अपने पास छुपा लेता है जो फिर ढूढे से भी नहीं मिलता पूरा जादूगर है.


सभी आने वाली आत्माओं के रहने की व्यवस्था होनी है और उनको स्थान का आबंटन सही तरीके से होना है इसकी व्यवस्था चंद्रदेव पर होगी वो अपनी सहायता के लिए भारत से कुछ मनुष्यों को बुला सकते हैं सभी सरकारी तंत्र से जुड़े हैं पक्ष-विपक्ष के आदमी हैं उनको आबंटन करना आता है बस ध्यान देने वाली बात ये है की वो अपने प्रियजनों को ज्यादा स्थान कम मूल्यों पर दे सकते हैं……


सभी आने वाले जानवरों की आत्मा की व्यवस्था की जिम्मेदारी गरुड़ पर होगी वो भी अपनी मदद के लिए भारत से एक मनुष्य को बुला सकते हैं परन्तु सावधानी रखनी होगी वो कभी-कभी जानवरों का चारा स्वयं खा जाता  है ………


तभी देव ऋषि नारद ने कहा “यदि भारत देश के मनुष्य इतने अधिक प्रतिभावान हैं तो क्यों न पहले इस देश में प्रलय करके इस देश के मनुष्यों को यहाँ ले आयें, और उन्हें व्यवस्था सौंप दें”


“तुम्हारा सुझाव उत्तम है” प्रभु बोले ” और तीनों प्रलयंकारी देवताओं से पूछा की भारत देश का नाम किस की लिस्ट में है”


“भूकंप देव” और सूनामी देवी दोनों ने कहा प्रभु इस विशाल देश का भार हम दोनों पर है……..!


“तो तुरंत जाओ और सर्वप्रथम इसी देश को अपनी प्रलयंकारी लहरों में लपेट लो”


वो दोनों तुरंत ही वहां से चले गए………. तब प्रभु ने कहा “पता चला है ये भारत देश के मनुष्य किसी मौनी और मजबूर मनुष्य की ही बात मानते हैं हमारे यहाँ ऐसा कौन सा देवता है जो मौन रहता हो और मजबूर भी हो….!”


इतना सुनते ही सभी देवी देवता एक दुसरे का मुँह ताकने लगे. तब प्रभु ने कहा ” तुरंत बताओं कौन है मौनी मजबूर देवता…… भारत के

नागरिक आते ही होंगे…..

परन्तु सब शांत…………….


“क्या हुआ सबको सांप सूंघ गया …………………… एक भी मजबूर नहीं है क्या……..!”


तब इन्द्र देव ने कहा ” प्रभु अभी हम लोगों को मजबूरी के विषय में ज्ञान नहीं है उस मौनी और मजबूर मनुष्य को भी

आ जाने दीजिये उसी से उसके मौन और मजबूरी के विषय में ज्ञान अर्जन कर लेंगे”

तभी सुनामी देवी और भूकंप देवता का आगमन हुआ…….


“अरे आप दोनों यहाँ लेकिन अभी तक तो कोई भी भारतीय यहाँ नहीं आया क्या तुमने भारत में प्रलय नहीं की……!”


प्रणाम प्रभु


दोनों प्रलयंकारी देवताओं ने हाथ जोड़कर कहा ” क्षमा करें प्रभु, लेकिन इस नाम का कोई देश पृथ्वी पर कहीं नहीं मिला…..


“ये कैसे हो सकता है”…… क्या तुमने नक्शा साथ नहीं लिया था…?


“लिया था प्रभु. ….परन्तु नक्शा गलत है जब प्रथ्वी पर भारत ही नहीं था तो किसी भारतीय को कैसे लाते……..!”


“ये क्या मजाक है………….?”


यहाँ तो साफ़ साफ़ लिखा है ये तीन ओर से समुद्र से घिरा भूखंड भारत है…..


क्षमा प्रभु पर ये गलत है……..


तो वहां किसी से पूछ लेते कोई तो मनुष्य होगा वहां पर…….


पुछा था प्रभु…………..
कोई मनुष्य तो वहां पर नहीं था लेकिन मनुष्य जैसे ही दिखने वाले जीव थे कोई अपने को हिन्दू बोलता था तो कोई मुसलमान कोई ईसाई भी कहता था पर किसी ने अपने को मनुष्य नहीं बताया और न ही कोई बोला की वो भारतीय है, कोई अपने को डाक्टर कहता था तो कोई इंजिनियर पर किसी ने अपने को इंसान नहीं बताया, आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है प्रभु की सब एक से थे फिर भी आपस में लड़ रहे थे. हमने सोचा शायद वो कोई और जीव रहे हों या हम प्रथ्वी के स्थान पर किसी और ग्रह पर पहुँच गए हों फिर हमने उस भूखंड का नाम पूछा तो किसी ने स्थान का नाम “महाराष्ट्र” बताया तो किसी ने तमिलनाडु कोई कह रहा था उत्तर प्रदेश तो कोई बंगाल ………….चारों तरफ ढूँढा प्रभु परन्तु भारत कहीं न मिला, तब हमें यकीन हो गया की या तो हम किसी अन्य ग्रह पर हैं या पृथ्वी पर कोई भारत देश ही नहीं है,  तो हम कहाँ जाकर प्रलय करते……….. !


प्रभू चिंतित हो उठे आखिर “भारत गया कहाँ……….?…………. उन्होंने तुरंत महाप्रलय का विचार स्थगित कर दिया और भारत और भारतियों को खोजने के लिए नारद मुनि को पृथ्वी पर भेज दिया.

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