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मैं लाचार हूँ…………..क्या प्रधानमंत्री बन सकता हूँ?

JANMANCH
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कल प्रधानमन्त्री जी का व्यक्तव्य सुना तो दिल बाग़ बाग़ हो गया. सुनकर ख़ुशी के आंसू बहने लगे. प्रधानमंत्रीजी के कथन से सुनकर लगा देश वाकई तरक्की कर रहा है. बताइये एक “लाचार” और “मजबूर आदमी” देश का प्रधानमन्त्री बन गया है तो मेरे अन्दर भी उत्साह की तरंगें हिलोरें मारने लगीं . एक उम्मीद बंधी की बेटा मुनीष अब तुम्हारा भी नंबर लग सकता है प्रधानमंत्री बनने का. मैं भी बहुत मजबूर और लाचार आदमी हूँ , और सच तो ये है की मेरी लाचारियत प्रधानमंत्रीजी से मिलती भी है. वो गठबंधन के आगे मजबूर हैं, मैं भी संबंधों को निभाने के लिए मजबूर हूँ. वो भी एक महिला के आगे नतमस्तक हैं मैं भी एक महिला के आगे नतमस्तक हूँ. उनकी सरकार में उन्ही की नहीं चलती मेरे घर में भी मेरी ही नहीं चलती. उनसे देश की व्यवस्था नहीं संभल रही है और मुझसे मेरे घर की व्यवस्था नहीं चलती. आप माने या न माने में भी प्रधानमन्त्री बनने लायक हूँ.


अब से पहले देश में जितने भी प्रधानमंत्री बने उन्हें देखकर लगता था की प्रधानमंत्री बनने के लिए बड़े विकट व्यक्तित्व की आवश्यकता होती होगी, कड़ी मेहनत करनी होती होगी, आम आदमी के लिए वहां तक पहुंचना बहुत मुश्किल काम होगा और में केवल दिवास्वपन देखकर ही रह जाता था की मैं प्रधानमंत्री बन रहा हूँ. परन्तु कल जब प्रधानमंत्रीजी की मनमोहिनी वाणी में प्रधानमंत्री बनने के लिए वर्तमान गुणों के बारे में सुना तो मुझे अपना स्वप्न साकार होता सा लगा.


पहले पहल जब प्रधानमंत्रीजी कितने ही घपलों घोटालों के बाद भी मौन धारण किये बैठे रहते थे तो मैं समझता था की उनको कुछ अता-पता नहीं है. अब पता चला ये तो राजनीती का एक पैतरा है कुछ भी होता रहे चुप बैठे रहो, और बुजुर्गों ने कहा भी है की “एक चुप सौ हराता है” और प्रधानमंत्री हो तो करोड़ों को हराता है. कोई कितना ही चीखे चिल्लाये चुप पड़े रहिये, आखिर कभी तो थकेगा ….और चला जाएगा. मेरे अन्दर भी ये गुण है कोई मेरे को कितना ही आवाज लगाए, बुलाये, कितना ही काम बताएं मैं चुप बैठा रहता हूँ. जब थक जाते हैं तो काम अपने आप ही कर लेते हैं. ये गुण भी मेरा प्रधानमंत्रीजी से बिलकुल मिलता है.


घर में सबसे बड़ा मैं ही हूँ सब रिश्तेदारों के आना जाना पड़ता है सब की मान मन्नौवत भी मुझे ही करनी पड़ती है सबसे संबंधों को बनाने की जिम्मेदारी भी मेरी ही है इसके लिए कभी कभी मुझे अपने विचारों से भी समझौता करना पड़ता था तो बहुत गुस्सा आता था, परन्तु अब जाके पता चला मैं बेकार ही गुस्सा होता था ये तो प्रधानमन्त्री बनने योग्य गुण है


एक बार हमारे एक रिश्तेदार ने हमारी कार मांगी, हमें पता था की उसे कार वार चलाना नहीं आती थी, लेकिन रिश्तेदारी धर्म जो निभाना था सो कार दे दी, और साहब जैसी उम्मीद थी वो कार को थोक भी लाये, हज़ारों का चूना हो गया और घरवाले परेशान रहे वो अलग. लेकिन हमने अपना धर्म निभाया ठीक प्रधानमंत्रीजी की तरह, देश जाये भाड़ में, लेकिन गठबंधन धर्म जरूर निभाया जाना चाहिए. वैसे भी हम हिन्दुस्तानी धर्म के मामले बड़े पक्के है, अब कर्ण को ही लीजिये दोस्ती धर्म के लिए दुष्ट दुर्योधन का साथ दिया और अपनी जान तक गवां दी. और प्रधानमंत्रीजी ने तो अभी केवल कुछ लाख करोड़ का चूना ही लगवाया है वो भी अपना नहीं देश का. अपनी अपनी हैसियत की बात है हमारे पास करोडो होते तो हम भी रिश्तेदारी धर्म निभाने के लिए अपना घर फूंक कर करोडो धुआं कर देते, ये गुण भी हमारा प्रधानमंत्रीजी से बहुत मिलता है.


मेरे अन्दर एक खासियत है चाहे कुछ भी हो जाये मैं अपनी मैडम की आज्ञा के बिना एक कदम भी नहीं चलता चाहे सही हो या गलत चाहे सारे मोहल्ले में आग लगी हो, और मेरे पास आग बुझाने का यंत्र हो लेकिन मैं तब तक आग नहीं बुझाऊंगा जब तक मैडम न कह दें, लग रही है आग तो लगने दो ठीक प्रधानमंत्रीजी की तरह सुना है वो भी किसी मैडम की ही ज्यादा सुनते हैं.


मेरे बच्चे मोहल्ले में कुछ भी शरारत कर आयें में उनसे कभी कुछ नहीं कहता, आखिर शरारत से ही तो बच्चों की योग्यता का पता चलेगा, जैसे सारे मंत्री मंडल में मंत्री कुछ भी करते रहें लेकिन प्रधानमन्त्री जी कभी कुछ नहीं कहते……. बस एक जगह चूक रहा हूँ मेरे बच्चों ने अभी तक घर में कोई चोरी-चकारी नहीं की, न ही कोई घोटाला किया, प्रधानमंत्री जी के मंत्रियों ने तो देश का खज़ाना शायद खाली ही कर दिया है, पता नहीं ये बच्चे कब सुधरेंगे इनकी एक चूक मेरी एक योग्यता कम कर रही है.


एक बात काले धन से भी याद आई, जैसे अपने यहाँ के मंत्री-संत्री यहाँ का पैसा और देशों में रख आते हैं यदि हमारी मैडम भी कहीं और रख आती हों तो मारा ये गुण भी प्रधानमंत्री बनने का पक्का हो जाएगा. में आज ही मैडम से पता करूंगा की तुम पैसे छिपाकर कहीं और तो नहीं भेजती, और यदि नहीं तो आज से ही पैसे घर से छुपाकर कहीं और भेज दो मायके ही सही, तुम्हारी इसी नासमझी के कारण मेरे प्रधानमंत्री बनने की एक योग्यता कम हो रही है.


अब आप लोग ही सोचिये मैं  हूँ प्रधानमंत्री बनने योग्य या नहीं……मेरे अन्दर लगभग सभी गुण विद्यमान हैं, और जो नहीं हैं वो मैं  कैसे भी करके पूरा करूंगा क्योंकि ऐसा सुनहरी मौका फिर हाथ नहीं लगेगा. कहीं “मजबूर” और “लाचार लोग” प्रधानमंत्री बनने बंद हो गए तो मेरा तो पत्ता ही कट जाएगा………

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