लीजिये साहब, अब सरकार के साथ ही कोर्ट भी गरीबों की रोज़ी रोटी के पीछे हाथ धो कर पड़ गया है, कहा है दो दिन के अन्दर गुटके की पैकिंग कागज़ की करवाइए, प्रोग्राम बनाइये. गुटका आएगा कागज़ की पैकिंग में और मारे जायेंगे कुछ गरीब जिनका गुटके की पाकिंग की पन्नियों से ही गुजारा चलता है. चौंक गए होंगे की मैं ये क्या लिख रहा हूँ, आप बड़े लोग हैं गुटका खाया और थूका इससे क्या क्या फायदे हैं ये कहाँ सोचते होंगे. गुटके के फायदों से पहले इसके वारे में ज़रा विस्तार से चर्चा हो जाए फिर फायदे भी बता देंगे.
वास्तव में देखा जाए तो किसी भी शब्दकोष में गुटके का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं दिया है फिर भी यह बहुप्रचलित और बहुप्रचारित शब्द है. केवल “गुटके” शब्द के उच्चारण मात्र से इसका अर्थ बड़ों से लेकर दुधमुहे बच्चे तक सब समझ जाते हैं. इस देश में एक गुटका ही ऐसी वस्तु है जिसने हर शहर, हर गली, हर कस्बे, और गाँव – गाँव में अपनी पहुँच बनायीं है. ये एक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, जब तक गुटके का सेवन न किया जाए दिन भर व्यक्ति में नीरसता रहती है. वास्तव में गुटका एक ऐसी स्वास्थवर्धक औषधि है जो शरीर को ताजगी से भरकर स्फूर्ति प्रदान करती है, और कहा भी गया है की,
फल, गुटके दोनों पड़े, पहले किसको पाए .
बलिहारी है गुटके पर, सेहत वही बनायें.
“गुटके” के सम्बन्ध में ये कहना मुश्किल है की यह कब प्रारंभ हुआ, वैसे गुटके का कोई न कोई स्वरुप प्राचीन काल से है ही हमारे समाज में विद्यमान रहा है. इसका एक रूप या कच्चा पदार्थ लोग आज भी प्रयोग में लाते हैं, कच्चे पदार्थ का अधिकतम प्रयोग पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में होता हैं. इसके प्रयोग की विधि भी सरल है जो की फिल्म शोले में गब्बर सिंह द्वारा विस्तार पूर्वक समझाई गयी है.
प्राचीन काल के गुटके में और आज के गुटके में बहुत अंतर आ गया है, अब ये छोटे छोटे और सुन्दर पुच में मिलता है जिसकी और मन सहज ही आकर्षित होता है, इसके सेवन से मुहं से भीनी भीनी सुगंध भी आती है वैसे भी समय के साथ वस्तुएं बदलती हैं सो गुटका भी अब नए प्रारूप में मिलता है.
जिस प्रकार गुटके का प्रारूप बदला है ठीक उसी प्रकार इसके ब्रांड भी बढे हैं तथा नित नए ब्रांड के गुटके बाज़ार में आ रहे हैं जैसे रजनीगंधा, प्रिंसे,चुटकी,पानपराग, महक,राज दरबार, दिलबाग, शिखर, यामू आदि पर आश्चर्यजनक तथ्य यह है की सभी ब्रांड बाज़ार में आने पर अपनी पहुँच बना लेते हैं तथा किसी अन्य ब्रांड की बिक्री इससे प्रभावित भी नहीं होती. इसका सीधा सा अर्थ यह है की इसकी लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ रही है.
इसकी बढती लोकप्रियता के कारण को जानने के लिए गुकता सेवन के लाभों पर निगाह डालनी होगी. या कह सकते हैं की इसके निम्न लिखित लाभ होते हैं:-
१) दांत रंगीन रहते हैं: गुटका खाने से दांत विभिन्न रंगों के हो जाते हैं जिससे सफ़ेद तथा नीरस दाँतों से छुटकारा मिल जाता है. रंगीन दांतों से व्यक्ति के रंगीन मिजाज़ अथवा हंसमुख होने का पता चलता है जबकि सफ़ेद दांत बोरियत तथा किसी शांतिदूत की निशानी होते हैं.
२) दांतों में कीड़ा नहीं लगता: गुटका खाने वालों को बार बार थूकना पड़ता है लिसके कारण दाँतों के कीड़े दाँतों में अपनी पकड़ नहीं बना पाते और निरंतर थूकते रहने के कारण वो मुहं से ब्बाहर निकल जाते है.
३) दांत मजबूत होते हैं: गुटका दांतों के द्वारा चबाया जाता है और निरंतर chabaate रहने से दांतों का व्यायाम होता रहता है. जिससे दांत मजबूत रहते हैं
४) कपड़ों पर डिजाइन गुटके की देन: विभिन्न प्रकार के डिजाइनों की खोज भी गुटका खाने से हुई हैं. जितने भी कपड़ों पर छींट, प्रिंट या बड़े प्रिंट होते हैं सब गुटका खाने वालों की देन है. शुरू में किसी गुटका खाने वाले ने बस मई से थूक दिया और वो किसी आदमी की शर्ट पर गिर गया, तभी अल्पेंलिबे ने दिम्माग की बत्ती जलाई और हो गई प्रिंट की खोज, तब से आज तक हर कम्पनी में एक थूक डिपार्टमेंट होता है जिसमें कपड़ों पर थोक थूक कर ही नए प्रिंट, छींट, आदि के कपडे तैयार होते हैं जिन्हें हम और आप बड़े मन से पहनते हैं.
५) रोजगार मिलता बढाता है: गुटका बनाने वाली कंपनियों में तो रोज़गार मिलता ही है, गुटका खाने वालों को “कपड़ों की कंपनी” में डिजाइन बनाने के लिए रखा जाता है अतः गुटका रोज़गार भी बढाता है.
६) लघु उधोग धन्दों को प्रोत्साहित करता है: “गुटके” की छोटी पन्नियों से घरेलु ग्रामीण महिलायें चटाई अथवा आसन बनाने का काम करती है. इसके लिए उन्हें किसी बाहरी सहायता की आवश्यकता भी नहीं होती और घर बैठे आमदनी भी हो जाती है. (यही उद्योग कोर्ट के निर्णय से प्रभावित होगा)
७) अन्य उधोगों को सहारा देता है: आजकल पान खाने का प्रचलन कम है और गुटका खाने का ज्यादा, जिससे पान की दुकानों पर भी गुटके ही मिलते हैं अब जो लोग गुटका लेने आते हैं वो कभी कभी रहम खाकर पान भी ले लेते हैं और पान की भी बिक्री हो जाती है. अतः पान उधोग को भी सहारा गुटका ही दे रहा है.
ये तो थे गुटके के प्रत्यक्ष लाभ लेकिन एक लाभ भी है, “गुटके” का योगदान देश के विकास में भी है. कभी कभी गुटका खाने ऐ छोटी मोटी बिमारी हो जाती है, जिससे देश के खाली बैठे डोक्टरों को रोजगार तो मिलता ही है साथ ही कभी कभी नए आविष्कार करने का मौका भी मिलता है, और आविष्कार सफल होने पर देश का नाम ऊँचा होता है, दूसरा राष्ट्र गुटके के माध्यम से कर के रूप में मोटी आमदनी भी वसूल करता है जो एक विकासशील देश विकास शील नेताओं के लिए अति आवश्यक है.
एक इंच बाई एक इंच का छोटा सा पैक और इतने सारे गुण शायद ही किसी अन्य वस्तु में होंगे, फिर भी कुछ सिरफिरे लोग “गुटके” के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं कहते हैं इससे गला ख़राब होता है, दांत ख़राब होते है, गले का कैंसर हो जाता है. पर सच तो यह है की प्राचीन काल से ही हमारे समाज में कुछएक समाजविरोधी तत्व मौजूद रहे हैं उन पर खुद तो कोई काम होता नहीं दूसरों को सही गलत का उपदेश देते रहते हैं. अब चाहे वो कबीर हो या रहीम, सुकरात हो या अरस्तू ……! इन्होने समाज को भड़काने और गलत शिक्षा देने के आलावा कुछ नहीं किया. और देखा जाये तो आलोचक किसके नहीं होते अथवा आलोचना किसकी नहीं होती, हर महान व्यक्ति की, हर नए आविष्कार की, हर वस्तु की आलोचना हुई है, तो क्या आलोचना के दर से हम राष्ट्र उत्थान का कार्य महज कुछ सरफिरे लोगों के दर से बंद कर दें–नहीं, हमें गुटका खाना चाहिए और खिलाना चाहिए. एक महान कवी ने कहा है:
पैकिट सर फाडिये, मुहं में दाल कै खाएं
और चारों धाम तीरथ के घर बैठे हो जाएँ.
कितने सुन्दर विचार और कितना सही आकलन.
अरे ये तो सफ़ेद कबूतरों की भांति दोस्ती का प्रतीक है. “गुटका” नए मित्र बनवाता है. उच्च वर्ग के लोगों में गुटका मेहमानों को उनके सम्मान में पान के स्थान पर खिलाया जाता है. ये गुटका तो हम प्रथ्वी वासियों को ईश्वरीय देन है जो की शायद स्वर्ग में इन्द्र के दरबार में भी न होगी. अतः हमें गुटके का सेवन करना चाहिए तथा कुछ ऐसे मूर्ख जो स्वयं को बुद्धिजीवी वर्ग में रखते हैं, उनकी बातों को कान नहीं देने चाहिए. अरे करना ही क्या है कविवर मुनीष दास जी कहते हैं:
हाथ में लियो पौडर सो, मुहं में डालो फट्ट
थोडा बहुत घुमाई के झटपट कर गयो चट्ट
ये एक ऐसा वरदान है जो प्रकृति ने हमें विभिन्न समस्याओं के समाधान के तौर पर दिया है सभी समस्याओं का उपचार इस एक वर्ग इंच के पैकिट में निहित हैं और कोर्ट इसकी पैकिंग खराब करने जा रही है हमें इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए. और गुटके वजूद को ख़त्म होने से बचाना चाहिए
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